Atmadharma magazine - Ank 307
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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* श्री कहान–रत्नचिंतामणि–जयंतिमहोत्सव विशेषांक *
: २० : आत्मधर्म : वैशाख : २४९प
आवो प्रबळ प्रभावनाउदय–तीर्थंकरत्वनो अंश, ए बेनो सुयोग आ कळिकाळमां
जोईने रोमांच थाय छे. मुमुक्षुओनां महापुण्य हजु तपे छे.
काठियावाडना आंगणे कल्पवृक्ष
अहो! ए परम प्रभावक अध्यात्ममूर्तिनी वाणीनी तो शी वात, तेनां दर्शन
पण महापुण्यना थोक ऊछळे त्यारे प्राप्त थाय छे. ए अध्यात्मयोगीनी समीपमां
संसारनां आधि–व्याधि–उपाधि फरकी शकतां नथी. संसारतप्त प्राणीओ त्यां परम
विश्रांति पामे छे अने संसारनां दुःखो मात्र कल्पनाथी ज ऊभां करेलां तेमने भासवा
मांडे छे. जे वृत्तिओ महा प्रयत्ने पण दबाती नथी ते गुरुदेवना सांन्निध्यमां
विनाप्रयत्ने शमी जाय छे, ए घणा घणा मुमुक्षुओनो अनुभव छे. आत्मानुं निवृत्तिमय
स्वरूप, मोक्षनुं सुख वगेरे भावोनी जे श्रद्धा अनेक दलीलोथी थती नथी ते गुरुदेवनां
दर्शनमात्रथी थई जाय छे. गुरुदेवनां ज्ञान ने चारित्र मुमुक्षु पर महा कल्याणकारी
असर करे छे खरेखर काठियावाडने आंगणे शीतळ छांयवाळुं, वांछित फळ देनार
कल्पवृक्ष फळ्‌युं छेे. काठियावाडनां महाभाग्य खील्यां छे.
हवे, सोनगढमां परिवर्तन कर्या पछीना, महाराजश्रीना जीवनवृत्तांत साथे
संबंध राखता केटलाक प्रसंगो काळानुक्रमे संक्षेपमां जोई जईए.
शत्रुंजय यात्रा
सोनगढथी १४ माईल दूर आवेला श्री शत्रुंजयतीर्थनी यात्रा करवानी घणा
वखतथी महाराजश्रीनी भावना हती. ते सं. १९९प ना पोष वद तेरशे पूर्ण थई.
लगभग २०० भक्तो सहित महाराजश्रीए ते तीर्थराजनी यात्रा अति उत्साह ने
भक्तिपूर्वक करी.
राजकोट चातुर्मास
राजकोटना श्रावकोना बहु आग्रहने लीधे सं. १९९पमां महाराजश्रीनुं राजकोट
पधारवुं थयुं. त्यां दशेक मासनी स्थिति दरम्यान महाराजश्रीए समयसार, आत्मसिद्धि
अने पद्मनंदिपंचविंशतिका पर अपूर्व प्रवचनो कर्या. गुरुदेवना आगळ वधेला
ज्ञानपर्यायोमांथी नीकळेला जड–चेतननी वहेंचणीना, निश्चय–व्यवहारनी संधिना तेम
ज बीजा अनेक अपूर्व न्यायो सांभळी राजकोटना हजारो लोको पावन थया अने अनेक
सुपात्र जीवोए पात्रता अनुसार आत्मलाभ मेळव्यो. दश मास सुधी ‘आनंदकुंज’ मां
(महाराजश्री ऊतर्या हता ते स्थानमां) निशदिन आध्यात्मिक आनंदनुं वातावरण
गुंजी रह्युं.