Atmadharma magazine - Ank 307
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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* श्री कहान–रत्नचिंतामणि–जयंतिमहोत्सव विशेषांक *
: वैशाख : २४९प आत्मधर्म : २१ :
गिरनार यात्रा
राजकोटथी सोनगढ पाछा फरतां महाराजश्री गिरिराज गिरनारतीर्थनी यात्रा
करवा पधार्या अने ए पवित्र नेमगिरि उपर लगभग ३०० भक्तो साथे त्रण दिवस
रह्यो. त्यां दिगंबर देरासरजीमां ऊछळेली भक्ति. ए सहस्राम्रवनमां जामी गयेली
स्तवनभक्तिनी धून अने ए समश्रेणीनी पांचमी टूंके पू. गुरुदेवश्री ‘हुं एक, शुद्ध, सदा
अरूपी, ज्ञानदर्शनमय खरे!’ वगेरे पदो परम अध्यात्मरसमां तरबोळ बनी गवरावता
हता ते वखते प्रसरी गयेलुं शांत आध्यात्मिक वातावरण–ए बधांनां धन्य स्मरणो तो
जीवनभर भक्तोना स्मरणपट पर कोतराई रहेशे.
राजकोट जतां तथा त्यांथी पाछा फरतां परम पूज्य गुरुदेव रस्तामां आवतां
अनेक गामोमां वीतरागप्रणीत सद्धर्मनो डंको वगाडता गया अने अनेक सत्पात्रोना
कर्णपट खोलता गया. गामे गाम लोकोनी भक्ति गुरुदेव प्रत्ये ऊछळी पडती हती अने
लाठी, अमरेली वगेरे मोटां गामोमां अत्यंत भव्य स्वागत थयुं हतुं. गुरुदेवनो
प्रभावना उदय जोई, जे काळे तीर्थंकरदेव विचरता हशे ते धर्मकाळमां धर्मनुं, भक्तिनुं
अध्यात्मनुं केवुं वातावरण फेलाई रहेतुं हशे तेनो ताद्रश चितार कल्पनाचक्षु समक्ष खडो
थतो.
श्री सीमंधरप्रभुनी प्रतिष्ठा अने अपूर्व भक्ति
सं. १९९६ ना वैशाख मासमां गुरुदेवनां पुनित पगलां फरी सोनगढमां थयां.
त्यार पछी तुरत ज शेठ काळिदास राघवजी जसाणीना भक्तिवंत सुपुत्रोए श्री
स्वाध्यायमंदिर पासे श्री सीमंधरभगवाननुं जिनमंदिर बंधाववा मांड्युं, जेमां श्री
सीमंधर भगवाननां अति भाववाही प्रतिमाजी उपरांत श्री शांतनाथ आदि अन्य
भगवंतोना भाववाही प्रतिमाजीनी प्रतिष्ठा पंचकल्याणकविधिपूर्वक सं. १९९७ ना
फागण सुद बीजना मांगलिक दिने थई. प्रतिष्ठामहोत्सवमां बहारगामनां लगभग
१प०० माणसोए भाग लीधो हतो. प्रतिष्ठाना आठे दिवस परम पूज्य गुरुदेवना
मुखमांथी भक्तिरसभीनी अलौकिक वाणी छूटती हती. लोकोने पण घणो उत्साह हतो.
प्रतिष्ठादिन पहेलां थोडा दिवस श्री सीमंधर भगवानना प्रथम दर्शने परम पूज्य
गुरुदेवनी आंखोमांथी आंसु वह्या हतां. सीमंधर भगवान मंदिरमां प्रथम पधार्या त्यारे
गुरुदेवने भक्तिरसनी खुमारी चडी गई अने आखो देह भक्तिरसना मूर्त स्वरूप जेवो
शांत शांत निश्चेष्ट भासतो लाग्यो. गुरुदेवथी साष्टांग प्रणमन थई गयुं अने
भक्तिरसमां अत्यंत एकाग्रताने लीधे देह एम ने एम बे त्रण मिनिट सुधी
निश्चेष्टपणे पडी रह्या. आ भक्तिनुं अद्भुत द्रश्य, पासे ऊभेला मुमुक्षुओथी