
गुरुदेवे पोताना पवित्र हाथे प्रतिष्ठा पण भक्तिभावमां जाणे देहनुं भान भूली गया
होय एवा अपूर्व भावे करी हती.
सूक्ष्म स्वरूपना प्रणेता वीतराग भगवंतनुं माहात्म्य हृदयमां स्फुर्युं होय छे तेथी
प्रवचनमांथी ऊठी तुरत ज जिनमंदिरमां भक्ति करतां वीतरागदेव प्रत्ये पात्र जीवोने
अद्भुत भाव उल्लसे छे. आ रीते जिनमंदिर ज्ञान ने भक्तिना सुंदर सुमेळनुं निमित्त
बन्युं छे.
चतुर्मुख प्रतिमाजी बिराजे छे. सुंदर आठ भूमि, कोट, (मुनिओ, अर्जिकाओ, देवो,
मनुष्यो, तिर्यंचो वगेरेनी सभाओ सहित) श्री मंडप, त्रण पीठिका, कमळ, चामर, छत्र,
अशोकवृक्ष, विमानो वगेरेनी शास्त्रोक्त विधिथी तेमां अति आकर्षक रचना छे.
मुनिओनी सभामां श्री सीमंधर भगवान सामे अत्यंत भावपूर्वक हाथ जोडीने ऊभेला
श्रीमद्भगवत् कुंदकुंदाचार्यनां अति सौम्य मुद्रावंत प्रतिमाजी छे. प्रतिष्ठामहोत्सव सं.
१९९८ ना वैशाख वद ६ ना मांगलिक दिवसे थयो हतो अने ते प्रसंगे बहारगामथी
लगभग २००० माणसो आव्या हतां. श्री समवसरणनां दर्शन करतां,
श्रीमद्भगवत्कुंदकुंदाचार्य सर्वज्ञ वीतराग श्री सीमंधर भगवानना समवसरणमां गया
हता ते प्रसंग मुमुक्षुनां नेत्रो समक्ष खडो थाय छे अने तेनी साथे संकळायेला अनेक
पवित्र भावो हृदयमां स्फुरतां मुमुक्षुनुं हृदय भक्ति ने उल्लासथी ऊछळी पडे छे. श्री
समवसरण–मंदिर थतां मुमुक्षुओने तेमना अंतरनो एक प्रियतम प्रसंग द्रष्टिगोचर
करवानुं निमित्त प्राप्त थयुं छे.
छे. दशेक ब्रह्मचारीओ तेमां जोडाया छे. तेमां जोडानारा ब्रह्मचारी त्यां त्रण वर्ष सुधी
रही दररोज त्रणेक कलाक नियत करेला धार्मिक पुस्तकोनुं शिक्षण प्राप्त करे छे,