Atmadharma magazine - Ank 307
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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* श्री कहान–रत्नचिंतामणि–जयंतिमहोत्सव विशेषांक *
: वैशाख : २४९प आत्मधर्म : २३ :
ते प्राप्त थयेला शिक्षणने एकांतमां स्वाध्याय द्वारा द्रढ करे छे अने महाराजश्रीनां
प्रवचनो, भक्ति वगेरेमां भाग ले छे; एम आखो दिवस धार्मिक प्रवृत्तिमां गाळे छे.
राजकोट तरफ विहार
परम पूज्य गुरुदेवे फरीने पाछा राजकोटना श्रावकोना आग्रहने लीधे अने
प्रभावना उदयने लीधे सं. १९९९ ना फागण सुद पांचमना रोज सोनगढथी वढवाण
रस्ते राजकोट जवा माटे विहार कर्यो छे. अमृत वरसता महामेघनी जेम रस्तामां
आवता दरेक गाममां परमार्थ–अमृतनो धोधमार वरसाद वरसावता जाय छे अने
अनेक तृषावंत जीवोनी तृषा छिपावता जाय छे. हजारो भाग्यवंत जीवो–जैनो ने
जैनतरो–ए अमृत वर्षाने झीली संतुष्ट थाय छे. जैनेतरो पण गुरुदेवनो आध्यात्मिक
उपदेश सांभळी दिंग थई जाय छे. जैनदर्शनमां मात्र बाह्य क्रियानुं ज प्रतिपादन नथी
पण तेमां सूक्ष्म तत्त्वज्ञान भरपूर भरेलुं छे एम समजातां तेमने जैनदर्शन प्रत्ये
बहुमान प्रगटे छे. गामोगाम बाळको, युवानो ने वृद्धोमां जैनो ने जैनेतरोमां
महाराजश्री आत्मविचारनां प्रबळ आंदोलनो फेलावता जाय छे अने ‘आ मोंघा
मनुष्यभवमां जो जीवे देह, वाणी अने मनथी पर एवा परम तत्त्वनुं भान न कर्युं,
तेनी रुचि पण न करी, तो आ मनुष्यभव निष्फळ छे’ एम दांडी पीटीने जाहेर करता
जाय छे.
ए अमृतसिंचक योगिराज काठियावाडनी बहार विचर्या नथी. जो तेओश्री
हिंदुस्तानमां विचरे तो आखा भारतवर्षमां धर्मनी प्रभावना करी हजारो तृषावंत
जीवोनी तृषा छिपावी शके एवी अद्भुत शक्ति तेमनामां देखाय छे.
(सं. २०२प सुधीमां तो तीर्थयात्रानिमित्ते तेम ज जिनबिंबोनी प्रतिष्ठा
वगेरेना हेतुथी समस्त भारतवर्षमां पू. गुरुदेवना अनेक मांगलिक विहार थया छे.
अने ते ते प्रसंगे तेओश्रीए स्वानुभवगर्भित आध्यात्मिक प्रचवनो द्वारा समस्त
जैन जगतने ढंढोळी जिनेन्द्रप्रणीत अध्यात्ममार्ग प्रत्ये जागृत कर्युं छे. तथा दिगंबर
जैन मार्गनी स्वानुभवप्रधानता जैन जगतमां गाजती करी छे. आ रीते भारतवर्षना
अनेक अध्यात्मपिपासु जीवोनी पिपासा पूज्य गुरुदेवे छिपावी तेमने नवजीवन
अर्प्युं छे.)
काठियावाडनुं गौरव
आवी अद्भुत शक्तिना धरनार पवित्रात्मा कानजीस्वामी काठियावाडनी महा