
प्रवचनो, भक्ति वगेरेमां भाग ले छे; एम आखो दिवस धार्मिक प्रवृत्तिमां गाळे छे.
रस्ते राजकोट जवा माटे विहार कर्यो छे. अमृत वरसता महामेघनी जेम रस्तामां
आवता दरेक गाममां परमार्थ–अमृतनो धोधमार वरसाद वरसावता जाय छे अने
अनेक तृषावंत जीवोनी तृषा छिपावता जाय छे. हजारो भाग्यवंत जीवो–जैनो ने
जैनतरो–ए अमृत वर्षाने झीली संतुष्ट थाय छे. जैनेतरो पण गुरुदेवनो आध्यात्मिक
उपदेश सांभळी दिंग थई जाय छे. जैनदर्शनमां मात्र बाह्य क्रियानुं ज प्रतिपादन नथी
पण तेमां सूक्ष्म तत्त्वज्ञान भरपूर भरेलुं छे एम समजातां तेमने जैनदर्शन प्रत्ये
बहुमान प्रगटे छे. गामोगाम बाळको, युवानो ने वृद्धोमां जैनो ने जैनेतरोमां
महाराजश्री आत्मविचारनां प्रबळ आंदोलनो फेलावता जाय छे अने ‘आ मोंघा
मनुष्यभवमां जो जीवे देह, वाणी अने मनथी पर एवा परम तत्त्वनुं भान न कर्युं,
तेनी रुचि पण न करी, तो आ मनुष्यभव निष्फळ छे’ एम दांडी पीटीने जाहेर करता
जाय छे.
जीवोनी तृषा छिपावी शके एवी अद्भुत शक्ति तेमनामां देखाय छे.
अने ते ते प्रसंगे तेओश्रीए स्वानुभवगर्भित आध्यात्मिक प्रचवनो द्वारा समस्त
जैन जगतने ढंढोळी जिनेन्द्रप्रणीत अध्यात्ममार्ग प्रत्ये जागृत कर्युं छे. तथा दिगंबर
जैन मार्गनी स्वानुभवप्रधानता जैन जगतमां गाजती करी छे. आ रीते भारतवर्षना
अनेक अध्यात्मपिपासु जीवोनी पिपासा पूज्य गुरुदेवे छिपावी तेमने नवजीवन
अर्प्युं छे.)