Atmadharma magazine - Ank 307
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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* श्री कहान–रत्नचिंतामणि–जयंतिमहोत्सव विशेषांक *
: २४ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९प
प्रभाव पड्या विना रहेतो नथी. तेओश्री अनेक सद्गुणोथी अलंकृत छे. तेमनी
कुशाग्रबुद्धि दरेक वस्तुना हार्दमां ऊतरी जाय छे. तेमनी स्मरणशक्ति वर्षोनी वातने
तिथि वार सहित याद राखी शके छे. तेमनुं हृदय वज्रथीये कठण ने कुसुमथीये कोमळ छे.
तेओश्री अवगुण पासे अणनम होवा छतां सहेज गुण देखतां नमी पडे छे.
बाळब्रह्मचारी कानजीस्वामी एक अध्यात्ममस्त आत्मानुभवी पुरुष छे. अध्यात्ममस्ती
तेमनी रगेरगमां व्यापी गई छे. आत्मानुभव तेमना शब्दे शब्दमां झळके छे. तेमना
श्वासे श्वासे ‘वीतराग! वीतराग!’ नो रणकार ऊठे छे. कानजीस्वामी काठियावाडनुं
अहीं विक्रमनी वीसमी सदी सुधीनो गुरुदेवनो जीवनपरिचय
आपे वांच्यो, त्यार पछी एकवीसमी सदीना केटलाक मुख्य
प्रसंगोनुं आलेखन हवे पछीना पृष्ठोमां आप जोशो.
अहो, श्री गुरुए जिनपद समजाव्युं
जे स्वरूप समज्या विना,
पाम्यो दुःख अनंत;
समजाव्युं ते पद नमुं
श्री सद्गुरु भगवंत.
जीव दुःखी केम छे? –के पोतानुं स्वरूप न समज्यो तेथी ते दुःखी छे. ते दुःख
क्यारे मटे? पोतानुं साचुं स्वरूप समजे तो दुःख मटे.
आत्मानुं साचुं स्वरूप जेमणे अनुभव्युं होय एवा ज्ञानी गुरु ज ते स्वरूप
यथार्थ समजावी शके. आत्मानुं साचुं स्वरूप समजावनारा आवा गुरु मळवा जीवने बहु
दुर्लभ छे. महा भाग्ये आवा गुरुनी उपासनाथी पोतानुं यथार्थ स्वरूप जे समज्यो ते जीव
परम उपकारबुद्धि प्रगट करे छे के अहो!! मारुं निजपद श्री गुरुए मने समजाव्युं–तेमने
हुं नमस्कार करुं छुं. श्री गुरुए मारुं साचुं पद बतावीने अनंत भवदुःखोथी मने छोडाव्यो.
जे स्वरूपने समजतां परम आनंद प्रगटे ने दुःख मटे–एवुं मारुं स्वरूप श्रीगुरुए मने
समजाव्युं.
हे जीवो! दुःखथी छूटवुं होय तो तमे पण श्रीगुरुए बतावेल निजात्मस्वरूपने
समजो.