* श्री कहान–रत्नचिंतामणि–जयंतिमहोत्सव विशेषांक *
: वैशाख : २४९प आत्मधर्म : २प :
अध्यात्मसंत श्री कानजीस्वामी
[जीवनपरिचय भाग–२] [ले : ब्र. हरिलाल जैन]
गुरुदेवना जीवनप्रसंगो अने तेमना प्रतापथी थयेला
शासनप्रभावनानां महानकार्योनुं आलेखन अहीं करवामां
आवे छे. गुरुदेवनुं जीवन शा माटे आलेखाय छे? शा माटे
आटला बधा मुमुक्षुओ एमना जीवनमां रस ले छे? –एक ज
कारण छे के एमना जीवनमांथी आपणने आत्महित साधवानो
मार्ग मळे छे, एमनुं जीवन आपणने संसारनी तुच्छता ने
धर्मनी महत्ता समजावे छे, एमनुं पवित्र जीवन ए कोई
पुराणपुरुषोना पूर्वजीवननी झांखी करावे छे, आत्मार्थ साधवा
माटे जीवनी केटली तैयारी होवी जोईए–ते तेमनुं जीवन बतावे
छे. आवा महापुरुषना अंतरंग जीवननी पूरी ओळखाण करवा
माटे अंतरनी कोई जुदी ज द्रष्टि जोईए. अने एवी ओळखाण
करनारा तो कोईक विरला ज होय. एक निकटवर्ती चरणसेवक
तरीके तेओश्रीना जे जीवनप्रसंगो जोवा के सांभळवा मळ्या
तेमांथी यत्किंचित् उल्लेखनीय प्रसंगो अहीं आपीए छीए.
सं. १९९६ वैशाख सुद बीजे ज्यारे उमराळामां तेओ जन्म्या त्यारे ज
‘आत्मानी शोध’ ना संस्कार ने भणकारा साथे लईने आव्या हता. एमना जीवननो
प्रवाह पहेलेथी ज आत्मशोध तरफ वहेतो हतो. ए दिशामां एमणे सतत धून वडे
अंतरना आत्मबळथी जे रीते सत्य शोध्युं, जे रीते आत्मानी मुक्तिनो निःशंकमार्ग
शोध्यो, अने जे रीते जगतना मुमुक्षुजीवोने माटे ए मार्ग खुल्लो कर्यो ते जोतां आश्चर्य,
आनंद अने बहुमान साथे मुमुक्षुना हृदयमां गुरुदेवना जीवननो आदर्श कोतराई
जाय छे.