* श्री कहान–रत्नचिंतामणि–जयंतिमहोत्सव विशेषांक *
: २६ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९प
गुरुदेवना जन्मकाळ वखतनी परिस्थिति जोईए तो–
एवा ए कळिकाळमां जगतना कंई पुण्य बाकी हतां,
जिज्ञासु हृदयो हता तलसता सद् वस्तुने भेटवा;
एवा कैंक प्रभावथी भरतमां ओ कहान तुं ऊतरे,
अंधारे डुबता अखंड सतने तुं प्राणवंतु करे.
गुरुदेवना जन्मथी युगनां एंधाण पलटावां मांड्यां, रागपोषक रुढिगत
क्रियाकांडने बदले अध्यात्मज्ञाननो अने जिनेन्द्रभक्तिनो युग सरजावा मांड्यो.
उजमबाने क्यां कल्पनाय हती के पोते जेने हीरनी दोरीए हींचोळे छे ते कुंवर एकवार
आखाय भारतने अध्यात्मरसना झूले झुलावशे. बे वर्षनां बाळपण वखते एमनी
बहेन ‘हरि’ एमने खोळामां लईने मेडी उपरनी बारीमां बेसती एटलुं गुरुदेवने
स्मरणमां आवे छे. ते वखते फळियामांथी ऊंचे नजर करतां मेडीनी जे बारीमां
कहानकुंवर देखाता, आजे ए ज बारीमां सीमंधरनाथना दर्शन थाय छे. क्यां ए
वखतनुं स्थानकवासीनुं घर, ने क््यां आजनुं सीमंधरजिन–चैत्यालय! जेमना प्रतापथी
एक जूनुंपुराणुं घर सुंदर जिनालयमां पलटाई गयुं. तेमना प्रतापे आत्मानुं रूप पण
परमात्मरूपमां पलटावा लागे तो शुं आश्चर्य छे!! खरेखर गुरुदेवे आत्मसाधनानो
अध्यात्मपंथ दर्शावीने भारतना खुणेखुणेथी हजारो जीवोने जागृत कर्या छे. सौराष्ट्रमां
तो दिगंबर जैनधर्मनुं नवसर्जन तेमणे ज कर्युं छे.
सौराष्ट्रमां तो दिगंबर जैनधर्मने ‘कानजीस्वामीनो धर्म’ –एम कहीने लोको
ओळखवा लाग्या, –आ उपरथी ख्याल आवे छे के दि. जैनधर्मनी प्रभावना करवा माटे
तेमनी केटली भारे प्रसिद्धि छे! पू. गुरुदेवे अंतर्वलणपूर्वक शोधेलो परमसत्य
आत्ममार्ग दिगंबर जैनधर्म जेम जेम प्रसिद्ध थतो गयो तेम तेम वधु ने वधु
जिज्ञासुओ तेना प्रत्ये आकर्षाता गया, ठेर ठेर मुमुक्षुओना मंडळो स्थपायां.
संप्रदायत्यागथी जागेलो वंटोळियो शमी गयो. गुरुदेव दिन प्रतिदिन वधु ने वधु
खीलता गया.
धार्मिक शिक्षणवर्ग
मात्र मोटी उंमरना गृहस्थो ज नहि परंतु नानी उंमरना बाळकोय गुरुदेवना
तत्त्वज्ञानमां उत्साहथी भाग ले छे; एटले विद्यार्थीओ उनाळानी दोढ मासनी
रजाओनो सदुपयोग करीने तत्त्वज्ञान पामे ते हेतुथी सं. १९९७ थी दर वर्षे धार्मिक
शिक्षणवर्ग खोलाय छे, –जेमां सेंकडो विद्यार्थीओ उत्साहथी भाग ले छे, तेनी परीक्षाओ
लेवाय छे ने ईनामो अपाय छे. ए ज रीते सं. २००४ थी दरेक वर्षे श्रावण मासमां
प्रौढगृहस्थो माटे पण शिक्षणवर्ग चाले छे, तेमां पण गामोगामना