Atmadharma magazine - Ank 307
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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* श्री कहान–रत्नचिंतामणि–जयंतिमहोत्सव विशेषांक *
: वैशाख : २४९प आत्मधर्म : २९ :
श्री हुकमचंदजी शेठ सोनगढमां
जैनसमाजना अग्रीम नेता, ईन्दोरना श्री हुकमचंदजी शेठ गुरुदेवनी
अध्यात्मख्याति सांभळीने, अने तेमनाद्वारा थयेली जैनधर्मनी महान प्रभावना
देखीने, सं. २००१ ना वैशाख वद छठ्ठे गुरुदेवना दर्शन तथा सत्संगार्थे अनेक पंडितो
सहित सोनगढ आव्या; तेमने गुरुदेवनो आ पहेलोवहेलो ज समागम हतो. गुरुदेवनुं
प्रवचन सांभळीने अने भक्ति वगेरेनुं अध्यात्मरसभीनुं वातावरण देखीने तेओ खूब
ज आनंदित थया, ने स्वाध्याय मंदिरने रूा. २प००१) नी उदार भेट आपी. तेओ
सोनगढ त्रण दिवस रह्या ने वैशाख वद छठ्ठ–आठमना उत्सवोमां हर्षथी भाग लीधो.
समवसरणनी रचना जोईने तेमने घणी प्रसन्नता थई.
भगवान श्री कुंदकुंद–प्रवचन–मंडप
दिनेदिने वधती जती जिज्ञासुओनी संख्याने लीधे उत्सवना दिवसोमां
स्वाध्यायमंदिर टूंकुं पडवा लाग्युं. तेथी तेना करतां चारगणो (पांच हजार चोरस
फूटनो) भगवान श्री कुंदकुंदप्रवचनमंडप’ बांधवानुं नक्की थयुं. सं. २००२ ना मागशर
सुद दसमे श्री हुकमचंदजी शेठना हस्ते घणा आनंदोल्लास भरेला वातावरणमां ए
मंडपनुं शिलान्यास थयुं. ए वखते रूा. ११००१) श्री हुकमचंदजी शेठे अर्पण कर्यां ने
कुल फाळो सवालाख रूा. उपरांत थयो. शिलान्यास प्रसंगे शेठजीए कह्युं के– ‘यह
महाराजजीके उपदेशके प्रभावसे बहुत जीवोंको लाभ हुआ है। मेरा भी अहोभाग्य
है कि मुझे महाराजश्रीके चरणोंकी सेवाका लाभ प्राप्त हुआ है। मेरी तो भावना है
कि मेरा समाधिमरण महाराजजीके समीपमें हो। आपकी पास तो मोक्ष जानेका
सीधा रास्ता है।’
जिनमंदिरमां थती जिनेन्द्र–भक्ति जोईने पण शेठजीनुं हृदय उल्लसी
पडतुं.
सं. २००३ ना फागण वद एकमे भगवानश्री कुंदकुंद–प्रवचनमंडपनुं उद्घाटन
शेठ श्री हुकमचंदजीना हस्ते घणा उल्लासभर्या वातावरणमां थयुं. शेठजीए आ वखतना
प्रवासने ‘सोनगढयात्रा’ नाम आपेल, ने तेमनी साथे ४प जेटला माणसो हता. आ
प्रसंगे सोनगढ त्रणेक हजार जेटला माणसो आव्या हता. अनेक पौराणिक चित्रो ने
सैद्धांतिक सूत्रोथी सुशोभित मंडपना उद्घाटन–प्रसंगे रूा. ३प०००) नी जाहेरात साथे
शेठजीए कह्युं हतुं के –‘हुं मारा हृदयमां एम समजुं छुं के मेरी सबकुछ संपत्ति आ
सद्धर्मनी प्रभावना अर्थे न्योछावर करी दउं तोपण ओछुं छे. आ प्रसंगे साथे आवेला
पंडित श्री देवकीनंदनजी वगेरेए पण उत्साह ने प्रमोद बताव्यो हतो. पंडितजीए तो
कह्युं हतुं के ‘अमारुं तो बधुंय भूलवाळुं हतुं, आपे ज सत्य समजाव्युं छे.’