Atmadharma magazine - Ank 307
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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* श्री कहान–रत्नचिंतामणि–जयंतिमहोत्सव विशेषांक *
: वैशाख : २४९प आत्मधर्म : ३३ :
श्रोताजनोए बहु ज आनंदोल्लासथी ए जयकार झीली लीधो ने बीजी तरफ ‘सद्धर्म–
प्रभावक दुदुंभी मंडळी’ नां वाजिंत्रोए मंगलनादथी तेमां सूर पुराव्यो.
समयसारना अगाध महिमानो ए एक आश्चर्यकारी प्रसंग हतो. त्यारबाद
ज्यारे १४ मी वखत समयसार उपर प्रवचनो शरू थयां त्यारे १४००० रूा. ना दाननी
जाहेरात थई; हालमां सोळमी वखत प्रवचनो चाले छे.
प्रतिष्ठा–महोत्सव अने विहार
सोनगढमां सं. १९९७ तथा १९९८ ना बे प्रतिष्ठा महोत्सव पछी सौ प्रथम सं.
२००प मां वींछीयामां पंचकल्याणक–प्रतिष्ठा महोत्सव उजवायो, अने ए निमित्ते
गुरुदेवे सौराष्ट्रमां विहार कर्यो त्यारे गुरुदेव पगे चालीने विहार करतां; ब्रह्मचारी
बाळको तेमनी साथे रहेता; रोज पांच–सात माईलनो प्रवास थतो. नाना गामडामां ए
वखते गुरुदेव साथे आखो दिवस जे आनंद आवतो तेना मधुर संभारणां आजेय
आनंद उपजावे छे. ए वखते गुरुदेव जे गामडामां पधारे त्यांना बधां खेडूतो पण
उत्सव जेवुं मानीने ते दिवसे सांची जोडवानुं बंध राखता ने होंसे होंसे गुरुदेवनुं
प्रवचन सांभळवा आवता. आ विहार दरमियान गुरुदेव उमराळा पधार्या त्यारे
जन्मभूमिस्थानना उद्धार माटेनी योजना अने फंडनी शरूआत थई. वींछीया जेवा
नाना गाममां भव्य पंचकल्याणक–प्रतिष्ठा महोत्सव उजवायो. ए महोत्सवमां प्रतिष्ठा
माटे पधारेला ४२ जिनबिंबो उपर गुरुदेवे पावनहस्ते अंकन्यासविधान कर्युं. अहा, ए
जिनेन्द्रोनो मेळो! ने ए पंचकल्याणकना उल्लासभर्यां द्रश्यो! ए वखते ईन्द्र प्रतिष्ठानुं
जूलुस हाथी उपर नहि पण गाडामां बेसीने नीकळेलुं.....छतांय ए प्रसंगो अद्भुत ने
आह्लादकारी लागता. ए वखते गुरुदेवना सुहस्ते प्रतिष्ठा कराववा माटे कलकत्ता,
ईन्दोर, भेलसा, कानपुर, मलकापुर, अजमेर वगेरे अनेक स्थळेथी जिनबिंबो आव्या
हता. ए ज वर्षे लाठी शहेरमां पण श्रुतपंचमीए पंचकल्याणक प्रतिष्ठानो महान उत्सव
थयो. बीजा वर्षे (सं. २००६मां) पण राजकोटना भव्य जिनमंदिरमां
पंचकल्याणकप्रतिष्ठा निमित्ते गुरुदेवे सौराष्ट्रमां विहार कर्यो. फागण मासमां राजकोटमां
महान प्रतिष्ठा महोत्सव उजवायो, तेमां एकंदर ३९ जिनबिंबोनी प्रतिष्ठा थई.
शत्रुंजय सिद्धिधामनी यात्रा
सौराष्ट्रना विहारमांथी पाछा फरतां सं. २००६ ना प्रथम अषाड सुद ४ ना
दिवसे पू. गुरुदेवे ८०० जेटला यात्रिकोना महान संघ सहित शत्रुंजय–सिद्धिधामथी
अपूर्व उल्लासभरी (बीजी) यात्रा करी. पांडवधाममां अद्भुत भक्ति–पूजन अने
प्रवचनो थया.