* श्री कहान–रत्नचिंतामणि–जयंतिमहोत्सव विशेषांक *
: वैशाख : २४९प आत्मधर्म : ३ :
२प. ते ज परम ज्योति छे. ४९. ते ज अभेदरत्नत्रयस्वरूप छे.
२६. ते ज शुद्धात्मअनुभूति छे. प०. ते ज वीतराग सामायिक छे.
२७. ते ज आत्मप्रतीति छे. प१. ते ज परम शरण–उत्तम–मंगल छे.
२८. ते ज आत्मसंवित्ति छे. प२. ते ज केवळज्ञानउत्पत्तिनुं कारण छे.
२९. ते ज स्वरूप–उपलब्धि छे. प३. ते ज सकलकर्मक्षयनुं कारण छे.
३०. ते ज नित्य–उपलब्धि छे. प४. ते ज निश्चय–चतुर्विध आराधना छे.
३१. ते ज परम समाधि छे. पप. ते ज परमात्मभावना छे.
३२. ते ज परम आनंद छे. प६. ते ज सुखनी अनुभूतिरूप
३३. ते ज नित्य–आनंद छे. परम कळा छे.
३४. ते ज सहज–आनंद छे. प७. ते ज दिव्य कळा छे.
३प. ते ज सदानंद छे. प८. ते ज परम अद्वैत छे.
३६. ते ज शुद्धात्म पदार्थनुं अध्ययन छे. प९. ते ज परम अमृत छे.
३७. ते ज परम स्वाध्याय छे. ६०. ते ज परम धर्मध्यान छे.
३८. ते ज निश्चय मोक्षउपाय छे. ६१. ते ज शुक्लध्यान छे.
३९. ते ज एकाग्र चिन्तानिरोध छे. ६२. ते ज रागादि विकल्पशून्य ध्यान छे.
४०. ते ज परम बोध छे. ६३. ते ज निष्कल (अशरीरी) ध्यान छे.
४१. ते ज शुद्ध उपयोग छे. ६४. ते ज परम स्वास्थ्य छे.
४२. ते ज परम योग छे. ६प. ते ज परम वीतरागपणुं छे.
४३. ते ज भूतार्थ छे. ६६. ते ज परम साम्य छे.
४४. ते ज परमार्थ छे. ६७. ते ज परम एकत्व छे.
४प. ते ज निश्चल पंचाचार छे. ६८. ते ज परम अभेदज्ञान छे.
४६. ते ज समयसार छे. ६९. ते ज परम समरसीभाव छे.
४७. ते ज अध्यात्मसार छे. ७०. ते ज अमृतमार्ग छे.
४८. ते ज समतावगेरे छ ७१. ते ज वीतरागविज्ञान छे.
निश्चयआवश्यक स्वरूप छे. ७२. ते ज भेदविज्ञान छे.