* श्री कहान–रत्नचिंतामणि–जयंतिमहोत्सव विशेषांक *
: ४ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९प
७३. ते ज सम्यक् दर्शन छे. ९१. ते ज सिद्धोने साचा नमस्कार छे.
७४. ते ज सम्यक् आचार छे. ९२. ते ज धर्मनी क्रिया छे.
७प. ते ज सर्वज्ञनी परमार्थस्तुति छे. ९३. ते ज मोक्षनी क्रिया छे.
७६. ते परम निष्कर्म छे. ९४. ते ज जैनधर्म छे.
७७. ते ज अकर्तृत्व भाव छे. ९प. ते जशुद्धपरिणति छे.
७८. ते ज अनेकान्तनुं रहस्य छे. ९६. ते ज ज्ञाननी अनुभूति छे.
७९. ते ज स्याद्वादनी सौरभ छे. ९७. ते ज शुद्धनय छे.
८०. ते ज शुद्ध उपादान छे. ९८. ते ज आत्मलब्धिनो अवसर छे.
८१. ते ज शुद्ध उपयोग छे. ९९. ते ज नियमथी कर्तव्य छे.
८२. ते ज परमात्मानी सेवा छे. १००. ते ज कारणपरमात्मा छे.
८३. ते ज शुद्धात्मसन्मुखपरिणाम छे. १०१. ते ज ज्ञानीनुं कार्य छे.
८४. ते ज धर्मनी पांच लब्धि छे. १०२. ते ज मोह–क्षोभरहित परिणाम छे.
८प. ते ज भव्यत्वशक्तिनी व्यक्ति छे. १०३. ते ज भावश्रुत छे.
८६. ते ज औपशमिकादि त्रण भाव छे. १०४. ते ज ज्ञायकभावनी उपासना छे.
८७. ते ज शुद्धचेतना छे. १०प. ते ज जैनशासन छे.
८८. ते ज सम्यक् पुरुषार्थ छे. १०६. ते ज परमेष्ठीपद छे.
८९. ते ज आनंदमार्ग छे. १०७. ते ज तीर्थंकरोनो मार्ग छे.
९०. ते ज परमात्मानो साक्षात्कार छे. १०८. ते ज चैतन्यचिंतामणि–रत्न छे.
[उत्तममां उत्तम एवां १०८ रत्नोनी आ मंगळ माळा–के जे पहेरवी
साधकजीवोने अत्यंत प्रिय छे, ते माळाद्वारा आपणी भक्ति अने आनंद व्यक्त करीए
छीए....ने भावना भावीए छीए के ए मंगळमाळानो एक मणको आपणे पण बनी
जईए. –हरि]