Atmadharma magazine - Ank 307
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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* श्री कहान–रत्नचिंतामणि–जयंतिमहोत्सव विशेषांक *
: : आत्मधर्म : वैशाख : २४९प
सम्यक्त्वनीरप्रवाह जेना हृदयमां नित्ये वहे,
तस बद्धकर्मो वालुका–आवरण सम क्षयने लहे.
द्रग्भ्रष्ट, ज्ञाने भ्रष्ट ने चारित्रमां छे भ्रष्ट जे,
ते भ्रष्टथी पण भ्रष्ट छे ने नाश अन्य तणो करे.
जे धर्मशील संयम–नियम–तप–योग–गुण धरनार छे,
तेनाय भाखी दोष, भ्रष्ट मनुष्य दे भ्रष्टत्वने.
ज्यम मूळनाशे वृक्षना परिवारनी वृद्धि नहीं,
जिनदर्शनात्मक मूळ होय विनष्ट तो सिद्धि नहीं.
१०
. ११
. १२
वळी जाणीने पण तेमने गारव–शरम–भयथी नमे,
तेनेय बोधि–अभाव छे पापानुमोदन होईने.
१३
ज्यां ज्ञान ने संयम त्रियोगे, उभयपरिग्रहत्याग छे,
जे शुद्ध स्थितिभोजन करे, दर्शन तदाश्रित होय छे.
१४
. १प
. १६
जिनवचनरूप दवा विषयसुखरेचिका, अमृतमयी,
छे व्याधि–मरण–जरादिहरणी, सर्वदुःखविनाशिनी.
१७
छे एक जिननुं रूप, बीजुं श्रावकोत्तम लिंग छे,
त्रीजुं कह्युं आर्यादिनुं, चोथुं न कोई कहेल छे.
१८