Atmadharma magazine - Ank 308
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 17 of 80

background image
: जेठ : २४९प आत्मधर्म : १५ :
दसका दरमियान नव वखत विहार, बे वखत बाहुबली–पोन्नूर वगेरे दक्षिणना
तीर्थोनी तथा मध्यभारतना तीर्थोनी यात्रा, एकवार सम्मेदशिखर अने उत्तर भारतना
तीर्थोनी यात्रा, बे वार गिरनारयात्रा, एकवार भोपाल तरफ, त्रणवार मुंबई,
आठवार पंचकल्याणकप्रतिष्ठा अने १७ वार वेदीप्रतिष्ठाना महोत्सव तथा केटलाय
ठेकाणे दि. जिनमंदिरोना शिलान्यास थया. लाखो जीवोए भारतनी आ महान
विभूतिना दर्शन कर्या तथा अध्यात्मसन्देश सांभळ्‌यो. गुरुदेवनुं जीवन धर्मप्रभावनाना
प्रसंगोथी केवुं भरपूर छे–तेनो आपणने आ उपरथी ख्याल आवशे. जोके संतोना
अंतरंग अध्यात्मजीवननो ख्याल एकला बाह्य प्रसंगो उपरथी तो न ज आवी
शके....छतां विचारक एटलुं तो स्पष्ट जाणी शके के एमनी बधी प्रवृत्तिओमां
अध्यात्मनी प्रधानता सतत जळवायेली होय छे, बधी प्रवृत्तिओमां–ते ते प्रवृत्ति करतां
चैतन्य तरफनुं एक विशिष्ट प्रकारनुं जोर एमना जीवनमां सतत वर्ती रह्युं छे. –एमना
जीवनपरिचय द्वारा चैतन्यनी महत्ता ज आपणे समजवानी छे, ए चैतन्य तरफना
श्री कुंदकुंदप्रभुनो तेमणे भरतक्षेत्रमां
अमारा उपर पंचमकाळे तीर्थंकर
मोटो उपकार जेवुं काम कर्युं
छे. छे.