: जेठ : २४९प आत्मधर्म : १७ :
अध्यात्मसंत श्री कानजीस्वामी
संक्षिप्त जीवनपरिचय भाग–३
(रत्नचिंतामणी जयंती प्रसंगे) (ले. ब्र. हरिलाल जैन)
पूज्य श्री कहानगुरुदेवना जीवननुं अवलोकन
करतां करतां सं. २०२० ना वैशाखमां आपणे मुंबई सुधी
आव्या छीए. मुंबईना हीरकमहोत्सव (७प मी जयंती)
थी मांडीने २०२प ना आ रत्नचिंतामणि महोत्सव (८०
मी जयंती) सुधीना पांच वर्षमां थयेल प्रभावनानुं
विहंगावलोकन हवे आपणे करीशुं. अहा, गुरुदेवना
जीवननुं अवलोकन करतां आपणे एक तीर्थंकरना ज
पूर्वजीवननुं अवलोकन करी रह्या छीए.....ने हृदयमां
अपार ऊर्मिओ उल्लसे छे. सम्यक्त्वरत्नना दातार एवा
आ रत्नचिंतामणि समान गुरुदेवना रत्नचिंतामणि–
जयंतीमहोत्सवे जगतमां रत्नत्रयमार्गनी अनेरी
प्रभावना करी छे.
सं. २०२० मां मुंबईनी हीरकजयंती पहेलां गुरुदेवे दक्षिणदेशना तीर्थधामोनी
अत्यंत भावभीनी यात्रा करी......ते वखते बाहुबली भगवाननी चेतनवंती मुद्रा जोई
जोईने, तेम ज कुंदकुंद प्रभुजीना चरणोने भेटी भेटीने जे ऊर्मिओ उल्लसी ते कोई
अद्भुत हती; जे कुंदकुंद प्रभुने विदेहक्षेत्रमां साक्षात् जोयेला ते ज कुंदकुदस्वामीने जाणे
अहीं साक्षात् निहाळता होय एवी लागणीओ ऊभराती हती. घणीवार गुरुदेव कहे छे
के ‘अहा! ए वखतना भावो अद्भुत हता! जे साथे आव्या हशे तेमणे ते जोया हशे.’
पोन्नूर उपर बेठा बेठा गुरुदेवे एम हस्ताक्षर लखी आप्या के ‘श्री सीमंधर
भगवानना दरशन करनार भगवान श्री कुंदकुंदाचार्य आदि नमोनम:’
श्रवणबेलगोलमां बाहुबली भगवानना दर्शन वखते पण गुरुदेव–स्तब्ध थई
जता. ए वीतरागी ढीमना दर्शने शांतिनी ने हर्षथी एटली बधी ऊर्मिओ जागती के
क्षणभर तो वाणी तेने व्यक्त करी शकती न हती. ‘श्री बाहुबली भगवाननो