: १८ : आत्मधर्म : जेठ : २४९प
जय हो, आनंदामृतनो जय हो’ एवा हस्ताक्षर वडे गुरुदेवे ए ऊर्मिओने चिरंजीवी
करी. वारंवार खूब बहुमानपूर्वक गुरुदेव कहेता के– ‘वाह! एमना मुख उपर केवा
अलौकिक भाव तरवरे छे! पवित्रता अलौकिक ने पुण्यनो अतिशय पण अलौकिक, –
बंने देखाई आवे छे. एमनो ज्ञानउपयोग अंतरमां एवो लीन थयो छे के बहार
आववानो अवकाश नथी. वीतरागी आनंदना अनुभवमां ए लीन थया छे. एमना
मोढा उपर अनंत आश्चर्यवाळी वीतरागता छे–जाणे चैतन्यनी शीतळतानो डुंगर!
अत्यारे आ दुनियामां एनो जोटो नथी.’
कुंदकुंद प्रभुनुं तपोधाम पोन्नूर तेनी पासे पांच माईल पर वांदेवास नामनुं
मोटुं गाम छे, त्यांना जिनालयमां सीमंधरभगवाननी खड्गासन प्रतिमाना दर्शन थतां
आनंद थयो. जाणे कुंदकुंद प्रभु विदेहमां जईने वहाला सीमंधरनाथने अहीं तेडी आव्या
होय! अहा, ज्यांथी कुंदकुंद प्रभुए विदेहयात्रा करी अने विदेहथी लावेली श्रुतगंगा
वहेती करी, ए पावनधामनी रमणीयता कोई अनेरी छे.....अने तेमांय गुरुदेव ज्यारे
पोन्नूरमां पधार्या त्यारे तो कुंदकुंद प्रभुनुं आखुं जीवन साक्षात् ताजुं थतुं हतुं.....जाणे
कुंदकुंदाचार्यदेव पुन: पधार्या होय एवुं वातावरण छवाई गयुं हतुं. चंपा
वृक्षनी छायामां कुंदप्रभुना चरणोने अति भावथी स्पर्श करीने गुरुदेवे गवडाव्युं ‘मन
लाग्युं रे कुंदकुंददेवमां’ अहा, ए वखते तो कहान गुरुनी भक्तिथी प्रसन्न थईने ए
सोनेरी पहाड कुंदकुंदप्रभुना सन्देश संभळावतो हतो. गुरुदेव साथेनी