: जेठ : २४९प आत्मधर्म : १९ :
यात्रामां पू. बेनश्रीबेन पण एवा प्रसन्न थता हता–जाणे के फरीने कुंदकुंद प्रभुनो
साक्षात्कार थतो होय! (‘सोनगढ’ अने पोन्नूर’ बंनेनो अर्थ समान छे.) तामिल
देशनी जनताए ‘कुंदकुंद प्रभुना प्रतिनिधि’ तरीके गुरुदेवनुं सन्मान कर्युं. दक्षिणयात्राथी
पाछा फरतां वच्चे गजपंथा सिद्धक्षेत्रनी पण यात्रा करी.
गुरुदेवना अंतरमां वीतरागरसनो प्रवाह निरंतर वर्ती रह्यो छे....प्रवचन
वखते तो वीतरागरसनी ए पावन गंगाना प्रवाहमां अनेक जिज्ञासुओ पावन थाय
छे; ते उपरांत तीर्थयात्राना विशेष प्रसंगो वखते, भूत–भाविनां कोई मंगल स्मरणोनी
यादी वखते, साधर्मी धर्मात्माओ साथेना विशेष प्रसंगो वखते, विशिष्ट शास्त्रोनी
स्वाध्याय के चिंतन करतां करतां जागेली ऊर्मिओ वखते–एम अनेक प्रसंगे ए
वीतरागरसनी मस्ती अने चैतन्यनी धून जोवा मळे छे; त्यारे एम थाय छे के वाह!
गुरुदेवनुं खरुं जीवन आज छे, आ ज एमना जीवननो कस छे....ए वीतरागी –
चैतन्यरसथी भरपूर जीवननी ओळखाण ते गुरुनी साची सेवा छे. घणीवार चैतन्यना
ऊंडा मननथी जागेला भावो व्यक्त करतां गुरुदेव प्रमोदथी कहे छे के ‘आ तो मारो
खोराक छे....’ चैतन्यनुं चिंतन ए ज आत्मार्थीनो खोराक छे. कोईवार बहारनी
प्रवृत्तिमां विशेष रोकावानो प्रसंग ऊभो थाय त्यारे गुरुदेव कहे छे के ‘अमारे घणां
काम छे...अमने वखत नथी...’ ‘घणां काम’ एटले बीजुं कांई नहि पण ऊंडा मनननुं
काम! चैतन्यगुणोनां रहस्यो एटलां ऊंडा ने गंभीर छे के तेमांथी काढो एटलुं नीकळ्या
ज करे. एनी धून आडे बीजी प्रवृत्तिमां अटकवुं मुमुक्षुने पालवतुं नथी. गुरुदेवना निकट
परिचयथी आपणने पण एवी चैतन्यधूननी ज प्रेरणा मळे छे...ने एम थाय छे के यह
जीवन तुमसा जीवन हो।’
सं. २०२० ना माह मासमां दक्षिणदेशना तीर्थोनी बीजी यात्रा करीने गुरुदेव
राजकोट पधार्या ने त्यां १३ दिवस सुधी अध्यात्मरसनी गंगा वहेवडावी, गुरुदेव ज्यारे
ज्यारे राजकोट पधारे त्यां एक अनेरुं वातावरण जामी जाय छे ने तत्त्वचर्चाथी गलीगली
गुंजी ऊठे छे. विशेषमां आ फागण सुद त्रीजना रोज गुरुदेवनी मंगलउपस्थितिमां भव्य
समवसरणनुं तेमज उन्नत मानस्तंभनुं शिलान्यास थयुं. सौराष्ट्र राज्यनुं आ पाटनगर
जिनेन्द्रवैभव वडे विशेष शोभवा लाग्युं. त्रणेक लाख रूा. ना खर्चे समवसरण तथा
मानस्तंभ तैयार थवा लाग्या. शासनप्रभावी गुरुदेवना प्रतापे तत्त्वचर्चाना युगनी जेम
जिनेन्द्रप्रतिष्ठानो पण युग प्रवर्तवा लाग्यो....एक ठेकाणे