Atmadharma magazine - Ank 308
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: २० : आत्मधर्म : जेठ : २४९प
जिनेन्द्रप्रतिष्ठानो उत्सव पूरो थाय त्यार पहेलां तो बीजे ठेकाणे तैयारी शरू थई जाय–
एम उपराउपरी बन्या ज करतुं. राजकोटमां १३ दिवस रह्या ने बंधनथी छुटकारानो
मार्ग बताव्यो; ते सांभळीने राजकोटनी सेन्ट्रल जेलना उपरीने पण एवी भावना थई
के आ जेलना केदीओ पण संसारनी जेलमांथी छुटकारानो मार्ग आवा संतना मुखथी
सांभळे तो तेमनुं जीवन उन्नत बने. एटले तेमनी विनतिथी लगभग अढीसो केदी
भाईओ समक्ष गुरुदेवनुं प्रवचन थयुं. त्यांना करुण अने
सोनगढमां भरउनाळे शीतलवृक्षनी छाया नीचे
एकांतमां स्वाध्याय करी रहेला गुरुदेव
चैतन्यशक्तिना ऊंडा मननमां मग्न गुरुदेव कहे छे के–
‘आ तो मारो खोराक छे’