: २२ : आत्मधर्म : जेठ : २४९प
पण प्रवचनमां आवता, उमराळा पोताना जन्मघरमां बिराजमान सीमंधरनाथना
दर्शन कर्यां, ने अहीं बे दिवस अद्भुत भक्ति थई. त्यांथी वच्चे (ता. ४–४–६४ ना
रोज) सोनगढमां सीमंधरनाथना दर्शन करीने गढडा, पाटी अने राणपुर थईने बोटाद
पधार्या. बोटादना भव्य शिखरबंधी जिनालयमां उपरना भागमां जिनबिंब वेदी
प्रतिष्ठानो महान उत्सव उजवायो. बोटाद पछी बरवाळा थईने चैत्र सुद तेरसे
अमदावाद पधार्या ने त्यां मंगलरूप महावीर भगवाननो २प६२ मो जन्मोत्सव
उजवायो. कई रीते आत्मसाधना करीने तेओ परमात्मा बन्या ते पाटनगरना
प्रवचनमां गुरुदेवे समजाव्युं; ने परम भक्तिथी भगवानना जन्मोत्सवनुं एवुं वर्णन
कर्युं, –जाणे के पोते वीरप्रभुनुं मधुरुं हालरडुं गाता होय! ६प वर्ष पहेलां दस वर्षनी
उंमरे सांभळेला ‘चैतर तेरस अजवाळी’ ते याद करीने वीरनाथना जन्मथी मांडीने
परमात्मदशा सुधीनुं भावभीनुं वर्णन कर्युं. अमदावाद पछी वडोदरा, मीयागाम,
पालेज, सुरत, बिलिमोरा अने घाटकोपर थईने, चैत्र वद छठ्ठ ने रविवार ता. ३–५–
६४ना रोज गुरुदेवे मुंबईनगरीमां प्रवेश कर्यो. –शा माटे? के ७प मी हीरकजयंती
माटे, अने दादर जिनालय तथा समवसरणना भव्य पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव
माटे. अद्भुत हता ए महोत्सवो.
मुंबईनगरीमां–
हीरकजयंती महोत्सव अने जिनेन्द्र–पंचकल्याणक महोत्सव
चैत्र वद छठ्ठ ने रविवार ता. ३–५–६४ अहा! ए दिवसे आखी मुंबईनगरी
जाणे आनंदथी हलमली ऊठी....हजारो जीवोनां टोळां हर्षोल्लासथी आझादमेदान तरफ
जई रह्या छे....अरे, ऊंचे आ शुं देखाय छे? –जाणे सोनाना शिखरवाळुं मंदिर! वाह,
ए तो छे महावीरनगरनुं प्रवेशद्वार. शी एनी शोभा! केवो भव्य ए मंडप! ने
जिज्ञासुओनी केटली बधी भीड! सवारमां गुरुदेव पधार्या, सीमंधरनाथना दर्शन कर्या
ने मुंबईनगरीनी जनताए हर्षभर्युं स्वागत कर्युं. केवुं उमंगभर्युं स्वागत! स्वागत
बाद मंगलप्रवचनमां आठ हजारनी मानवमेदनी समक्ष चैतन्यनी सुंदरता बतावनारुं
सुंदर प्रवचन गुरुदेवे कर्युं.... अहा, एकत्व–विभक्त चैतन्यस्वरूप आत्मा ज सर्वत्र
सुंदरपणे शोभे छे. आवुं चैतन्यस्वरूप सांभळवा माटे बपोरना धोमधखता तापमांय
हजारो जीवोनां टोळां मुंबईना महावीरनगरमां ऊभराता हता, –शुं सांभळ्युं एमणे
प्रवचनमां! प्रवचनमां एमणे समयसारना कर्ता–कर्म अधिकारनी प्रारंभिक