जैनसाहित्यना एक किंमती आभूषण जेवो शोभी रह्यो छे. शास्त्रीजी द्वारा अणधार्या
आवी पहोंचीने गुरुदेवने आ ग्रंथना अर्पणनो यादगार प्रसंग गुरुदेवना विशिष्ट
पुण्यप्रभावने प्रसिद्ध करे छे. गुरुदेवनी चरण छायामां आ बाळके दश–दश वर्षथी जे
गं्रथनी भावना भावी हती ते ग्रंथ अंते आ हीरकजयंतीप्रसंगे सर्वांग सुंदर स्वरूपे
प्रकाशीत थयो ने मारी ते भावना पूरी थई.
मुंबईनगरीने मुंबई मटाडीने काशी (वाराणसी) बनावी दीधी हती. अमे मुंबईमां नहि
पण पारसनाथना बनारसमां बेठा छीए–एवी लागणी प्रेक्षको अनुभवता हता. उत्सवमां
भाग लेवा बहारगामोथी पांच हजार जेटला भक्तो आव्या हता. आ उत्सवनिमित्ते
मुंबईमां महान धार्मिक जागृति आवी गई, तेनी साथे आसपासना परांना गामो पण
जाग्या ने घाटकोपर, बोरीवली, मलाड, दादर, खार, गोरेगांव, कांदीवली, दहीसर वगेरेमां
पण मुमुक्षुमंडळनी विशेष प्रवृत्तिओ शरू थई. मुंबईना आ महान उत्सवोए आखा
भारतनुं लक्ष मुंबई तरफ अने गुरुदेव तरफ आकर्ष्युं.
पर जन्माभिषेक–ए रीते चोथा काळमां बनेला ए पावनप्रसंगो आ पंचमकाळे
मुंबईमां देखीने मुमुक्षुओ पोताने धन्य समजता; अने सहेजे अनुमान पण थई शकतुं
के जेमना प्रतापे आवा पंचकल्याणको वारंवार उजवाय छे ते महात्मा पोते पण
पंचकल्याणक साथे सीधो संबंध धरावनारा छे. पार्श्वप्रभुना जन्मकल्याणकनी सवारी
कोई अनेरी हती. ज्यां माणसनेय चालवानी मुश्केली एवा मुंबईना रस्ता पर हाथीनी
सवारी, ने साथे सात सूंढवाळो ऐरावत, ए द्रश्यो जोवा सात सात माळना मकानो
पण ऊभराई पड्या हता. पछी पार्श्वप्रभुनी दीक्षानां वैराग्यद्रश्यो, मुनिराजने
आहारदान, अनेक उपसर्गो छतां धैर्यपूर्वकनी क्षमा, –ए बधाय द्रश्यो वीतरागशासन
प्रत्ये अने मुनिवरो प्रत्ये परम भक्ति जगाडता हता. गुरुदेव परमभक्तिथी मंत्राक्षर
वडे अंकन्यासविधि करता त्यारे साध्य अने साधकनी केवी एकता छे–ए देखीने मुमुक्षुने
अद्वैतभक्तिरूप निर्विकल्प साधनानुं स्मरण थतुं हतुं. पछी