Atmadharma magazine - Ank 308
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: २८ : आत्मधर्म : जेठ : २४९प
तेमने अतिशय प्रिय छे. ने तेओ कहे छे के आ जीव उपर कुंदकुंदाचार्यदेवनो अने
समयसारनो महान उपकार छे. निरंतर तेनुं स्वाध्याय–मनन तेओ करे छे. अनेक
वर्षोथी तेना उपर प्रवचनो तो थाय छे ज, ते उपरांत बपोरनी निवृत्तिना समये
एकांतमां बेसीने समयसारनुं ऊंडुं अध्ययन तेओ हंमेशा करे छे, ने ए रीते शताधिक
वार तेमणे समयसारनी स्वाध्याय करी छे. ए स्वाध्याय करतां करतां कोई कोईवार
तेओ विदेहक्षेत्रना सीमंधरस्वामीनां अने कुंदकुंदस्वामी वगेरेना ऊंडा विचारमां चडी
जाय छे.....त्यारे आ भरतक्षेत्रना वातावरणने भूलीने विदेहक्षेत्रना वातावरणमां
एमनुं चित्त थंभी जाय छे. सं. १९७८ मां ज्यारे तेमणे समयसारना उपोद्घातमां
कुंदकुंदप्रभुना विदेहगमन संबंधी उल्लेख वांच्यो त्यारे तेमना आत्मामां विदेहना
अव्यक्त संस्कार झणझणी ऊठेला ने अंतरना ऊंडाणथी ए वातनो सहर्ष स्वीकार
आव्यो हतो. पछी तो ए संबंधमां आत्मसाक्षात्कार जेवुं ज अत्यंत मजबूत प्रमाण सं.
१९९३ मां पू. बेनश्री चंपाबेनना जातिस्मरणज्ञानना बळे प्राप्त थयुं, ने भूत–
भविष्यना अनेक पावनप्रसंगोनी वधु ने वधु स्पष्टताथी गुरुदेवनोय आत्मा खीली
ऊठ्यो....गुरुदेवना मुखेथी ए वात साक्षात् सांभळनारा भक्तो तो हर्षथी नाची
ऊठता. आजथी २३ वर्ष पहेलां (सं २००३ मां) आ बाळकने पण पू. गुरुदेवना
साक्षात् चरणोमां बेसीने दोढ कलाक सुधी परम वात्सल्यपूर्वक ए बधुंय सांभळवानो
परम आनंदकारी लाभ प्राप्त थयो छे...अहा, गुरुदेवना श्रीमुखथी विदेहनुं आश्चर्यकारी
वर्णन ने धर्ममाताओनो अपार महिमा, ए राजकुमार अने तेना बंने मित्रोनी मधुरी
वातो तथा ते त्रणेनी भविष्यनी महान जगपूज्य पदवी, –ए बधुंय श्रीगुरुमुखथी
सांभळतां कोई परम कल्याणनी आगाहीथी असंख्य प्रदेशो झणझणी ऊठता हता.
गुरुदेवनी परम कृपानो ए प्रसंग स्मरणमां आवतां अत्यारेय चैतन्यप्रदेशोमां गुरुदेव
प्रत्येनी अनेरी लागणीना मधुर तरंगो उल्लसे छे, –जाणे कोई एक तीर्थंकरनी साथे ज
आ आत्मा वसतो होय एवो आनंद ऊभराय छे. धन्य गुरुदेव! धन्य आपनो
मंगलमूर्ति आत्मा! (षट्खंडागममां तीर्थंकरादिना आत्माने त्रिकाळमंगळस्वरूप कहेल
छे, तेनो भावभीनो उल्लेख गुरुदेव घणीवार करे छे, तेमांय अव्यक्तपणे पोताना
भाविना भणकार गुंजता होय छे.)
समयसार उपर गुरुदेवनां प्रवचनो १६ मी वखत (सं. २०२पमां) चाली रह्यां
छे.....समयसारनी शरूआत वखते ‘हुं सिद्ध....तुं सिद्ध’ एम कहीने ज्यारे गुरुदेव
अत्यंत प्रमोदथी आत्मामां सिद्धपणुं स्थापता होय ते वखते सिद्धभगवानना