: जेठ : २४९प आत्मधर्म : २९ :
साक्षात्कार जेवा महा प्रमोदथी श्रोताओ उल्लसी जाय छे. आत्माना जोसपूर्वक
कुंदकुंदस्वामीनी वती गुरुदेव कहे छे के ‘हुं सिद्ध, तुं सिद्ध,’ –हा पाड! ने हाल्यो आव
सिद्धपदमां! अमारी पासे समयसार सांभळवा आव्यो ते जीव भव्य ज होय. सिद्धपणुं
लक्षमां लईने तेनी हा पाडी ते अप्रतिहत मांगलिक छे. आम गाथाए गाथाए मोक्षना
मंगळ मोतीनो मेहुलो वरसावता गुरुदेव श्रोताओनां हृदयमां शुद्धात्मानुं बहुमान
ठांसीठांसीने भरे छे, ने रागादिनुं बहुमान जडमूळथी कढावी नांखे छे. आज ३प–४०
वर्षोथी १६–१६ वखत समयसारनां प्रवचनो थवा छतां वक्ता अने श्रोताओनो रस
वधतो ज जाय छे, वधु ने वधु भावो खूलता जाय छे. तेना उपर प्रवचनोनां पांच
पुस्तको छपाई गयां छे. एमांथी त्रण पुस्तकोमां प्रवचनो तो पू. बेनश्री–बेन
(चंपाबेन शान्ताबेन) ना सुहस्ते लखायेलां छे.
ए ग्रंथाधिराजनी मूळ गाथाओ (४१प) चांदीमां कोतरायेली छे, एटलुं ज
नहि, पण विदेहमां साक्षात् जोयेला कुंदकुंदाचार्यप्रभुनो जेमणे अहीं जातिस्मरणना बळे
साक्षात्कार कर्यो छे एवा पूज्य बेनश्री चंपाबेनना सुहस्ते सोनगढना
स्वाध्यायमंदिरमां समयसारनी पूजनीक स्थापना थई छे. आजे तो जैनसमाजमां
मुमुक्षुओनां घरेघरे समयसार बिराजे छे ने आदरपूर्वक तेनो अभ्यास थाय छे.
समयसारना भावोनुं जे रहस्य गुरुदेव अनेक वर्षोथी समजावी रह्या छे तेना
प्रतापे धार्मिकसाहित्यमां अत्यारे ‘समयसारनो युग’ वर्ती रह्यो छे ने अनेक जिज्ञासु
जीवो एमां बतावेला एकत्व–विभक्त शुद्ध–ज्ञायक आत्माने लक्षगत करीने एना
अनुभवने माटे उद्यमशील वर्ते छे. –ए रीते जैनशासननी साचा हार्दनी महान जीवन्त
प्रभावना थई रही छे.
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(अहींथी आगळ वधतां पहेलां एक बाबतनो थोडो उल्लेख करी लईए;)
गुरुदेव जड–चेतननी भिन्नता अने आत्मानुं अविनाशीपणुं समजावीने जे
भेदज्ञान घूंटावी रह्या छे–तेना प्रतापे जिज्ञासुओनुं जीवन तो पलटी जाय छे, ने मरण
पण सुधरी जाय छे. भावमरणथी बचावीने आनंदमय आत्मजीवननो मार्ग गुरुदेव
बतावी रह्या छे, ‘आत्मा तो अविनाशी छे, देहथी भिन्न छे’ –एवा प्रकारना
गुरुदेवना उपदेशना संस्कार वडे जेणे पोतानुं जीवन सींच्युं छे ते मुमुक्षुना जीवनमां