Atmadharma magazine - Ank 308
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: ३० : आत्मधर्म : जेठ : २४९प
तो कोई महान पलटो आवी जाय छे, अने मृत्युप्रसंग पण एवा अनेरा प्रकारे थता
होय छे के जे देखीने लोको आश्चर्यमां पडी जाय छे. मुमुक्षुने माटे मृत्यु ए कोई मोटो
‘हाउ’ नथी पण जाणे के धर्मना उत्सवनो कोई प्रसंग छे, एवी अत्यंत साहजिकताथी,
अंतिम घडी सुधी देव–गुरु–धर्मने याद करता करता, के तत्त्वनुं चिन्तन करता करता देह
छोडीने बीजे चाल्या जाय छे. एटलुं ज नहि, पाछळना जिज्ञासुओ पण मृत्यु पाछळ,
(कोईवार तो भरयुवान वये मृत्यु होय तोपण) कल्पांत के ककळाट न करतां अत्यंत
धैर्य राखीने तत्त्वना वांचन–विचार वडे वैराग्यनुं बळ वधारे छे; तेने आश्वासन
आपवा आवनारा बीजाओ तेनुं धैर्य देखीने, तेने आश्वासन आपवाने बदले ऊल्टा
तेनी पासेथी आश्वासन पामे छे. तीव्र दर्दमां के अत्यंत गंभीर ओपरेशन वखतेय
जिज्ञासुओ जे धैर्य राखे छे ते देखीने केटलाय दाकतरो पण आश्चर्य पामे छे. श्वेताम्बर
समाजना एक प्रसिद्ध साधु पण एक वखत तो बोलेला के आ सोनगढवाळा लोकोनुं
मरण पण जुदी जातनुं थाय छे! बीजा एक भाई कहेता के समाधिमरण करतां शीखवुं
होय तो सोनगढ जाओ. बीजा अनेकविध प्रतिकूळ प्रसंगोए तो ठीक परंतु मृत्यु जेवा
प्रसंगे पण आ प्रकारना धार्मिक संस्कारोनी जागृति अने शांतपरिणाम रहेवा ते गुरुदेवे
आपेला वीतरागी तत्त्वज्ञानने लीधे मुमुक्षुने अत्यंत सुगम बने छे. गुरुदेव घणीवार
कहे छे के भाई, आ अपूर्व चेतन्य तत्त्व जे समजीने अनुभवमां लेशे तेनी तो शी
वात! परंतु आ तत्त्वनुं्र लक्ष करीने तेना हकारना संस्कार जे पाडशे तेने पण बीजा
भवमां ते संस्कार ऊगीने आत्मानुं हित करशे. खरेखर, परभवमां ए संस्कार नहि
भुलाय, तेम ए संस्कारदाता गुरुदेवनो उपकार पण नहि भुलाय.
सोनगढमां धर्ममय वातावरण
आम तो सोनगढमां पू. गुरुदेवनी मंगलछायामां सदाय एवुं धर्ममय
वातावरण वर्ते छे के मुमुक्षुओ पोते जाणे के नानकडा समवसरणमां बेठा होय एम
अनुभवे छे. तेमांय श्रावण महिनो ए सोनगढमां विशेष धार्मिक प्रवृत्तिमय होय छे; ते
वखते गुरुदेवना सान्निध्यमां शांतिथी रहेवा ने तत्त्वनो अभ्यास करवा भिन्न भिन्न
प्रांतोमांथी सेंकडो जिज्ञासु गृहस्थो आवे छे, साधर्मीजनो परस्पर मिलनथी आनंदित
थाय छे, वहेली सवारथी मोडी रात सुधी ज्यां जुओ त्यां तत्त्वचर्चानो मेळो देखाय छे.
खूब खूब अभ्यास करीने तत्त्वनुं आखा वर्षनुं भातुं घणा जिज्ञासुओ आ