: ३२ : आत्मधर्म : जेठ : २४९प
गुरुदेव चैतन्यवस्तुमां वास्तु करवानी रीत बतावता कहे छे के भाई! आ बहारना
घरमां तारुं वास्तु नहीं, अंदर अनंतगुणथी भरेली एवी तारी चैतन्यवस्तुमां ज तारुं
वास्तु छे; तेने ओळखीने तेमां तुं वस! ते ज मंगळ वास्तु छे.
पुराणकथाना आधारे अवनवा धार्मिक संवादो–नाटको पण सोनगढमां तेम ज
अन्यत्र प्रसंगअनुसार बाळको भजवे छे, ने ते द्वारा बाळकोमां नानपणथी ज धार्मिक
द्रढताना सुंदर संस्कार रेडाय छे. सीताजी, अंजना, चेलणा, अकलंक–निकलंक, भरत–
बाहुबली, श्रींकठवैराग्य, वारिणेषकुमार, वज्रबाहुवैराग्य, हरिषेणचक्रवर्ती, वगेरे अनेक
धार्मिक नाटको भजवाई चूक््यां छे.
सं. २०१० थी २०२० मां कुल पचीस वखत जिनबिंब प्रतिष्ठाना प्रसंगो
बन्या, अने पछी पण ते प्रवाह चालु ज रह्यो. २०२० ना आसो मासमां जसदणमां
जिनमंदिरनुं शिलान्यास थयुं.
गुरुदेवने सम्मेदशिखर वगेरे तीर्थो उपर खास लागणी छे. जैनसमाजमां ज्यारे
ए तीर्थो संबंधी हिलचाल चालती हती त्यारे गुरुदेव पण तीर्थरक्षा संबंधमां चिन्ता
धरावता, अवारनवार चर्चामां तेनो उल्लेख करता, ने कहेता के मूळ तो जैन दिगंबर
धर्म ज हतो; पण दिगंबर मुनिओ तो परम निस्पृह, ते तो कांई बहारनी उपाधिमां
पडे नहीं. तीर्थोमां अहींथी भगवान मोक्ष पधार्या छे–तेनी यादी तरीके भगवाननां
पगलां होय छे. आवा तीर्थोनी जाळवणी माटे बंदोबस्त थवो जोईए. तीर्थोनी जेम
साधर्मी प्रत्येनो प्रेम पण अपार छे. एना अनेक प्रसंगो बन्या छे. सीताजी, अंजना
वगेरेनुं जीवन वांचता वांचता गुरुदेवने आंसु आवी जाय छे; तेओ कहे छे के धर्मात्मा
उपरनुं दुःख हुं जोई शकतो नथी. ए ज रीते शास्त्रो प्रत्ये पण घणो प्रेम ने आदर छे;
कोई नवीन शास्त्र प्राप्त थतां तेओ प्रसन्न थाय छे.
राजस्थानना बयाना शहेरमां पांचसो वर्ष प्राचीन (सं. १प०७नी)
सीमंधरभगवाननी प्रतिमा बिराजे छे–ए वात २०२१ ना कारतक मासमां सोनगढमां
जाणवा मळी; ते जाणीने गुरुदेव वगेरे खूब प्रसन्न थया; ने एनां दर्शननी ईंतेजारी जागी.
सं. २०२० मागशर–पोषमां समयसारनी ४७ शक्ति उपरना प्रवचनमां गुरुदेव
अद्भुत खील्या हता. ४७ शक्तिना प्रवचनो वखते चैतन्यगुणो प्रत्येनो एमने केवो
परम आह्लाद उल्लसे छे! –ते तो सांभळनारने नजरे देखाय छे. गुरुदेव रोज सवा–