Atmadharma magazine - Ank 308
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९प आत्मधर्म : ३७ :
समवसरणमां अने मानस्तंभमां गुरुदेवे घणा भक्तिभावे सीमंधरप्रभुनी
प्रतिष्ठा करी, हजारो भक्तो आनंदपूर्वक ए साध्य–साधकनुं मिलन नीहाळी रह्या.
समवसरणमां कुंदकुंदाचार्यदेवनी पण स्थापना करी. गुरुदेवना प्रभावथी आ पंदरमो
पंचकल्याणकमहोत्सव थयो हतो. प्रतिष्ठा पछी बीजे दिवसे (वै. सुद तेरसे) गुरुदेव
सोनगढ पधार्या. अने भरउनाळामां तत्त्वपिपासुओ माटेनी परब फरीने चालु थई.
आ वर्षनी श्रावण वद बीजे पू. बेनश्री चंपाबेनना मंगल जन्मदिवसे सभामां
पू. गुरुदेवना श्रीमुखथी हार्दिक प्रमोदभर्या उद्गारो सांभळीने सभाजनो अति हर्षित
थया; –ए सुवर्णप्रसंग ईतिहासमां चिरस्मरणीय रहेशे; ते उद्गारो अक्षरश; लखायेला
छे, ने अहीं आपवानुं मन थाय छे, परंतु तेओश्रीने पोतानी प्रसिद्धि प्रत्येनी अत्यंत
उदासीनताने कारणे ते मुलतवी राखवुं पडे छे. तेमनुं चार भवनुं जातिस्मरणज्ञान तेम
ज अनुभवज्ञान वगेरेनी प्रसिद्धि बाबत एकवार गुरुदेवे सहेज विचार बताव्यो त्यारे
तेमणे सहजभावे कह्युं के गुरुदेव! ए बधो तो आपनो प्रताप छे; बहार प्रसिद्धिनुं शुं
काम छे?’ गुरुदेव कोईवार आ प्रसंग याद करीने एमनी गंभीरतानो महिमा बतावे
त्यारे सांभळनारा आश्चर्य पामे छे. गुरुदेव घणीवार कहे छे के आवां बे बहेनो पाक््यां
छे ते मंडळनी बहेनोनुं महाभाग्य छे.
श्री जैन स्वाध्यायमंदिर ट्रस्टना निवृत्तप्रमुख मुरब्बीश्री रामजीभाई माणेकचंद
दोशीए त्यां संस्थानी शरूआतथी ज जे सेवाओ करी छे, ने पचीसेक वर्ष सुधी संस्थाना
प्रमुखपदे रहीने संस्थानो जे विकास कर्यो छे, ते बदल तेमना ८३ मा जन्मदिवसे
(भादरवा सुद चोथे) तेमना सन्माननो एक मेळावडो योजवामां आव्यो हतो; अने
प्रमुखश्री नवनीतलालभाईनी प्रेरणाथी आ निमित्ते साहित्यप्रचार माटे एक लाख रूा.
जेटलुं फंड मुमुक्षुओमांथी भेगुं थयेल हतुं. ते रकममांथी पचासेक हजारना खर्चे
सोनगढमां स्वाध्यायमंदिरना चोकमां एक ‘कुंदकुंदकहानजैनसरस्वतीभवन’ बंधायेल
छे; तेनुं उद्घाटन २०२२ ना भादरवा सुद चोथे जैनसमाजना आगेवान शेठश्री
शांतिप्रसादजी शाहु (कलकत्ता) ना हस्ते थयुं.
‘आत्मधर्म’ मासिक–के पहेलेथी जेना संपादक मुरब्बीश्री रामजीभाई हता,
तेनो वधु ने वधु व्यवस्थित विकास थाय ते हेतुथी माननीय प्रमुखश्रीए ब्र. हरिभाईने
तेनुं संपादन सोप्युं. अने गुरुदेवनी कृपाद्रष्टि झीलीने आत्मधर्मनो वधु ने वधु विकास
थवा लाग्यो. आत्मधर्मनी रजतजयंतीना वर्षमां तेनो ३०० मो अंक वांचीने अत्यंत