: जेठ : २४९प आत्मधर्म : ३९ :
छे. महावीरजयंती जेवा प्रसंगे गुरुदेव प्रवचनमां कहे छे के भगवान महावीर शरीरमां
जन्म्या ज नथी, शरीरपणे ते ऊपज्या ज नथी. ए एमनी निर्मळ ज्ञानपर्यायोपणे ज
ऊपजे छे. –एवी पर्यायमां वर्तता आत्मा तरीके जे भगवानने ओळखे तेणे खरा
महावीर भगवानने ओळख्या छे. दीपावली प्रसंगे भगवानना मोक्षनो अपार महिमा
करीने साथे साथे कहेशे के– भाई, जेवा निधान भगवान पासे छे तेवा ज निधान तारा
आत्मामां भर्या छे, तेने तुं ओळख, तो तारामां पण आवी मोक्षदशा प्रगटे.
केवी अपूर्व रजूआत! मुमुक्षुओ तो निजनिधान सांभळतां राजी राजी थई
जाय छे. आत्माने साधवा माटे गुरुदेवनी आवी वाणी मुमुक्षुने शूरातन चडावे छे.
गुरुदेव घणीवार कहे छे के शुद्धात्माने ध्येय बनावीने धर्मी जीवोनो संघ मोक्षपुरीमां
चाल्यो जाय छे, –हे जीव! तुं पण एमां भळी जा! स्वानुभवीनी अंदरनी ज्ञानचेतनानुं
स्वरूप अने ते अंगे थयेली चर्चा गुरुदेव कोईवार कहे छे, ते चर्चा ज्ञानीनुं साचुं हृदय
समजावनारी छे. (आत्मधर्म अंक २६६, पृ. ४प मांथी ए वांचवा–विचारवा
जिज्ञासुओने भलामण करीए छीए.) खरेखर, अनुभवना ऊंडाणमांथी अध्यात्मरसनुं
मधुर झरणुं गुरुदेव सदा वहेवडावी रह्या छे. तेनुं रसपान करतां एम लागे छे के अहा,
जाणे के कोई बीजा ज अगम्य देशमां विचरता होईए, ने आ संसारथी दूर दूर क््यांक
चाल्या गया होईए.
मध्यप्रदेशमां गुरुदेवनो विहार थया पछी उज्जैन, भोपाल, ईन्दोर, गुना,
अशोकनगर वगेरे अनेक शहेरोना मुमुक्षुमंडळमां विशेष जागृति आवी, अने
‘मध्यप्रांतीय मुमुक्षुमंडळ’ सं. २०२२ मां स्थपायुं; तेना द्वारा जैन शिक्षण शिबिर वगेरे
योजनाओ वडे तत्त्वज्ञाननो सारो प्रचार थाय छे. एनुं उद्घाटन मध्यप्रदेशना प्रधान
श्री मिश्रिलालजी गंगवाले कर्युं हतुं; तेमने गुरुदेव प्रत्ये घणो आदर छे, ने गुरुदेव
भोपाल पधार्या त्यारे तेमने त्यां ज उतारो हतो. भारतना मोटाभागमां गुरुदेवना
प्रवास दरमियान ठेर ठेर ऊमटेली जैनमेदनी नजरे जोतां आ लेखकनुं द्रढ अनुमान छे
के भारतमां जैनोनी वस्ती एक करोड जेटली हशे.
सं. २०२२ ना पोषमासमां एवो योगानुयोग बन्यो के अहीं सोनगढमां
गुरुदेवने एक स्वप्न आव्युं जेमां वीरजीभाई देवलोकमां देखाया; ते ज वखते
जामनगरमां पथारीवश वीरजीभाईए गुरुदेवना दर्शननी ईच्छा व्यक्त करी. –आथी