: जेठ : २४९प आत्मधर्म : ४९ :
कहानगुरु जिनरथना सारथि हता. अनेक वैभवसम्पन्न ए रथयात्राने नीहाळीने
लाखो लोको आश्चर्य पामता, राजस्थानी–गुजराती–मुलतानी सौ भक्तो, एकबीजानी
साथे उमंगथी जिनभक्ति करता हता. दसदस दिवसना करफ्युनी वेदनामांथी छूटेली
जयपुरनगरी आ अद्भुत रथयात्रा देखीने आनंदथी प्रफुल्लित बनी हती. रथयात्रानी
पूर्णता थतां अढार हाथीओए सूंढ ऊंची करीने सलामी आपी, के बराबर ते ज वखते
कुदरतनी अमीवृष्टिरूपे आकाशमांथी झरमर छांटणा वरस्या. अद्भुत हतो जयपुरनो
ए प्रभावशाळी उत्सव, –अने एथीये वधु रोमांचकारी आनंदनो प्रसंग हजी बीजे
दिवसे बनवानो छे. –क्यां? ए तो हमणां आप आ अंकमां ज वांचशो.
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फागण सुद छठ्ठना रोज जयपुरथी सम्मेदशिखरजीना यात्रासंघनुं ४०० यात्रिको
सहित प्रस्थान थयुं. महावीरजीनी प्रशांतमूर्तिना दर्शन कर्यां, अने फागण सुद सातमे
आव्या–बयाना शहेर.
बयानाशहेरमां सीमंधर भगवानना दर्शनथी गुरुदेवने अपूर्व उल्लास
अने गुरुमुखथी पूर्वभवनुं आनंदकारी वर्णन
बयाना शहेरमां सीमंधरभगवानना प्राचीन प्रतिमाजी (सं. १प०७ ना)
बिराजे छे; प्रतिमाजी परना शिलालेखमां लख्युं छे के– ‘पूर्व्व विदेहके तीर्थकर्ता श्री
जीवन्तस्वामी श्री सीमंधरस्वामी.’ ए विदेहीनाथना दर्शनथी गुरुदेवने अलौकिक
ऊर्मिओ जागी, एमनी साथेना पूर्वभवना संबंधना स्मरणो ताजा थया ने प्रवचन
वखते अत्यंत आनंदभर्या वातावरणमां ए वात गुरुदेवे प्रसिद्ध करी. मंगलप्रवचनमां
गुरुदेवे कह्युं के–अत्यारे सीमंधर भगवान पूर्वविदेहमां तीर्थंकरपणे विचरे छे. बे हजार
वर्ष पहेलां जेमनी वाणी सांभळीने कुंदकुंदाचार्यदेवे शास्त्रो रच्यां ते ज सीमंधर
भगवान अत्यारे पण बिराजी रह्या छे. अमारे सोनगढमां पण सीमंधर भगवाननी
स्थापना छे, अहीं सीमंधर भगवानना प०० वर्ष प्राचीन प्रतिमाना दर्शनथी हमको
बडा प्रमोद आव्या.
आ सीमंधरभगवान हमारा प्रभु है, हमारा देव है, तेमनो अमारा उपर महान
उपकार छे. आ पहेलांना भवमां अमे ते भगवान पासे हता, पण अमारी भूलना
कारणे अहीं भारतमां आव्या छीए, कुंदकुंदाचार्यदेव अहींथी सीमंधरपरमात्मा