Atmadharma magazine - Ank 308
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: ५४ : आत्मधर्म : जेठ : २४९प
छे. भव्य रथयात्रा माटे अजमेरथी आवेला सोनेरी रथमां सारथि तरीके कहानगुरु
बेठा हता; उदेपुरमां चंद्रप्रभस्वामी वगेरे भगवंतोनी प्रतिष्ठा करीने गुरुदेवे गुजरातमां
प्रवेश कर्यो ने बामणवाडा आव्या, त्यांथी अमदावाद थईने बोटाद आव्या; बोटाद
शहेरमां आनंदपूर्वक गुरुदेवनो ७८मो जन्मोत्सव उजवायो. वैशाख सुद त्रीजे राजकोट
पधार्या ने त्यां जैनशिक्षणवर्ग चाल्यो. वैशाख वद ९ ना रोज पुन: सोनगढमां पधार्या.
सोनगढमां आवतांवेंत मंगलमां स्वानुभवरसनो महिमा करतां कह्युं के स्वानुभूतिमां
वेदातो शांतरस ते ‘रसेन्द्र’ छे, सर्व रसोमां ते ज श्रेष्ठ छे. आम शांतरसनुं अध्यात्म–
झरणुं सोनगढ वहेवा लाग्युं.
(बाकीनो भाग आवता अंके)
* * * * *
आत्मानो रोग अने तेनी दवा
आत्मभ्रांति सम रोग नहि,
सद्गुरु वैद्य सुजाण;
गुरु आज्ञा सम पथ्य नहि,
औषध विचार ध्यान.
‘हुं कोण छुं’ एनी जेने खबर नथी, पोते पोताना ज स्वरूपने भूली गयो
छे. एवी आत्मभ्रांति ते मोटो रोग छे, ने तेने लीधे जीव महादुःखोथी पीडाय छे.
आत्मभ्रांति समान बीजो कोई रोग जगतमां नथी; केम के देहमां रोगादि थाय तेनुं
दुःख कांई जीवने नथी, जीवने पोताना मिथ्यात्वरोगनुं ज महा दुःख छे.
ए रोग केम मटे? –तो कहे छे के ते माटे हे भव्य! तुं ज्ञानी सद्गुरुने
साचा वैद जाणीने तेमनुं सेवन कर; सद्गुरुनी आज्ञारूप पथ्यनुं सेवन कर. ने
गुरुए जेवुं आत्मस्वरूप बताव्युं तेवा स्वरूपनो विचार अने ध्यान कर. –ए ज
आत्मरोग मटाडवानुं अमोघ औषध छे. श्री गुरुए बतावेल शुद्धात्मस्वरूप
ओळखीने तेने ध्यावतां भ्रांति टळीने सम्यक्त्व पमाय छे. ने भवरोग मटीने
सिद्धपद प्रगटे छे.