बीजे ज दिवसे ‘बीज’ हती. परमवत्सल पू. बेनश्रीबेनना प्रतापे पचास बहेनोनुं केवुं
उत्तम जीवनघडतर थई रह्युं छे ने आत्महित माटे केवी उत्तम प्रेरणाओ मळी रही छे ते
तो नजरे जोनारने ख्याल आवे. गुरुदेवनो अध्यात्मउपदेश मुमुक्षुना अंतरमां जे
वैराग्यबीज रोपे छे. तेने वात्सल्यनां पाणी पाईने माताजी उछेरे छे......ने संतोना
प्रतापे ऊगेलुं ए वैराग्यनुं झाड सम्यक्त्वादि मधुरां फळ आपनारुं छे.
आमां बताव्यो छे.
संभळावे छे त्यारे जिज्ञासुना रोमरोम पुलकित थईने ज्ञानीना स्वानुभव प्रत्ये उल्लसी
जाय छे. ज्ञानीनी ‘ज्ञानचेतना’ केवी होय? ने तेनुं कार्य शुं? तेनुं स्वानुभवसहित
वर्णन लक्षगत करतां मुमुक्षुना अंतरमां कोई अपूर्व भेदज्ञाननी झणझणाटी जागी जाय
छे. (एना नमूना माटे जुओ आत्मधर्म नं. २९८)
पूछयुं के– ‘गुरुदेव! अमारुं शुं? त्यारे गुरुदेवे कह्युं– ‘ज्यां अमे त्यां तमे’ अहा, ठेठ
सिद्धपद सुधीना साथीदार एवा गुरुदेवना मुखथी ‘ज्यां अमे त्यां तमे’ ए सांभळीने
बंने बहेनोने असंख्य प्रदेशे जे आह्लाद थयेलो तेनी असर आजे पां५ीसवर्ष पछी
पण तेमनी वाणीमां देखाय छे. आवा तो बीजा घणाय आनंदप्रसंगो गुरुदेवना प्रतापे
बनेला छे.
अध्यात्म–