Atmadharma magazine - Ank 308a
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: ८ : आत्मधर्म : प्र. अषाड : २४९प
हिन्दी बहेनो पण अनेक छे. आ प्रसंगे उत्सव जेवुं अनेरुं वातावरण हतुं, ने वळी
बीजे ज दिवसे ‘बीज’ हती. परमवत्सल पू. बेनश्रीबेनना प्रतापे पचास बहेनोनुं केवुं
उत्तम जीवनघडतर थई रह्युं छे ने आत्महित माटे केवी उत्तम प्रेरणाओ मळी रही छे ते
तो नजरे जोनारने ख्याल आवे. गुरुदेवनो अध्यात्मउपदेश मुमुक्षुना अंतरमां जे
वैराग्यबीज रोपे छे. तेने वात्सल्यनां पाणी पाईने माताजी उछेरे छे......ने संतोना
प्रतापे ऊगेलुं ए वैराग्यनुं झाड सम्यक्त्वादि मधुरां फळ आपनारुं छे.
‘समयसार’ अने ‘ज्ञानचेतना’
सं. १९७८ मां समयसार हाथमां आव्युं त्यारे गुरुदेवना पहेला उद्गार आ
हता के ‘आ शास्त्र अशरीरीभाव बतावनारुं छे; अशरीरी एवा सिद्धपदनो मार्ग
आमां बताव्यो छे.
चर्चा थयेली ते प्रसंग याद करीने कोईकवार प्रसन्नताथी गंभीरभावे ज्यारे गुरुदेव
संभळावे छे त्यारे जिज्ञासुना रोमरोम पुलकित थईने ज्ञानीना स्वानुभव प्रत्ये उल्लसी
जाय छे. ज्ञानीनी ‘ज्ञानचेतना’ केवी होय? ने तेनुं कार्य शुं? तेनुं स्वानुभवसहित
वर्णन लक्षगत करतां मुमुक्षुना अंतरमां कोई अपूर्व भेदज्ञाननी झणझणाटी जागी जाय
छे. (एना नमूना माटे जुओ आत्मधर्म नं. २९८)
‘ज्यां अमे त्यां तमे’
सं. १९९१ पहेलां, ज्यारे गुरुदेव संप्रदाय छोडीने परिवर्तननी विचारणामां
हता, निवृत्त थईने क्यांक एकांतमां रहेवा चाहता हता, ते वखते बंने बहेनोए एम
पूछयुं के– ‘गुरुदेव! अमारुं शुं? त्यारे गुरुदेवे कह्युं– ‘ज्यां अमे त्यां तमे’ अहा, ठेठ
सिद्धपद सुधीना साथीदार एवा गुरुदेवना मुखथी ‘ज्यां अमे त्यां तमे’ ए सांभळीने
बंने बहेनोने असंख्य प्रदेशे जे आह्लाद थयेलो तेनी असर आजे पां५ीसवर्ष पछी
पण तेमनी वाणीमां देखाय छे. आवा तो बीजा घणाय आनंदप्रसंगो गुरुदेवना प्रतापे
बनेला छे.
अगाउ जेनो उल्लेख थई गयो छे ते सरस्वती भवनना उद्घाटन–प्रसंगे
सोनगढ पहेली ज वार आवेला जैनसमाजना नेता शाहू शांतिप्रसादजी शांत
अध्यात्म–