Atmadharma magazine - Ank 308a
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: प्र. अषाड : २४९प आत्मधर्म : ९ :
वातावरणमां प्रसन्न थईने एम बोल्या के–मुझे यह पवि५ तीर्थस्थानमें आकर बडी
प्रसन्नता हूई, आज जैसे हमलोग भगवान कुंदकुंदस्वामीका नाम मंगलरूपमें लेते हैं
वैसे भविष्यकी पेढीके लोग आपका (कानजी स्वामीका) नाम लेते रहेगें.’
सं. २०२४ नुं वर्ष ते ‘आत्मधर्मनी रजतजयंति’ नुं वर्ष हतुं. सं. २०००मां शरू
थयेलुं आ मासिक सं. २०२४ मां पचीस वर्ष पूरा करतुं हतुं; आत्मधर्म द्वारा गुरुदेवनी
वाणी घरे घरे जिज्ञासुओ अत्यंत प्रेमथी वांचे छे. रजतजयंतीना वर्षमां गुरुदेवना
विशेष आशीर्वाद मळ्‌या, साथे साथे आ वर्षमां ज श्रीमद्राजचंद्रजीनी जन्मशताब्दिनो
पण उत्सव हतो तेथी तेमनां सारभूत उत्तम वचनामृतोनुं दोहन करीने आत्मधर्म द्वारा
तेनो खूब प्रचार करवामां आव्यो. पं. टोडरमल्लजीनी द्विशताब्दिनो उत्सव पण आ ज
वर्षमां उजवायो ने तेना प्रचारमां पण खास विशेषांकद्वारा महत्त्वनो फाळो आप्यो.
आफ्रिकामां पण आपणा जिज्ञासुओए ‘श्रीमद्राजचंद्रस्मृतिगृह’ बंधावेलुं छे.
आफ्रिकामां एक मुमुक्षुभाईने त्यां लग्नप्रसंगे चार हजार धार्मिक पुस्तको सोनगढथी
मंगावीने लाणी करवामां आवी हती, ने जैनविधि–अनुसार लग्न थया हता. गुरुदेवना
उपदेशनो थोडक पण लक्षगत करतां कुदेव–कुगुरु–कुधर्मनुं सेवन तो मुमुक्षुना हृदयमांथी
जडमूळथी ऊखडी जाय छे, अने वीतरागी देव–गुरु–धर्म प्रत्ये कोई अनेरी भक्तिनो
उमंग जागे छे. आ तो धर्मनो एकडो लखवा माटेनी कोरी पाटी छे. –एकडो तो हजी
एनाथी आघो छे.
गुरुदेव पासे कोई हस्ताक्षर मागे तो सामान्यपणे ““” लखी आपे छे. एक
भाईए हस्ताक्षर मांग्या. “ लखी आप्यो, ते भाई कांई समज्या नहि एटले कह्युं के
आपनुं नाम लखी आपो. –त्यारे गुरुदेव कहे के आ “ छे ते सर्वभगवाननी वाणी छे;
ए ज अमारुं नाम छे ने ए ज अमारुं धाम छे. “ एटले शुद्धआत्मा. (जे दिवसे आ
वात थई ते दि’ फागण वद एकम हती, सोनगढमां ज्यां गुरुदेव बिराजे छे त्यां “ नी
स्थापना ते दिवसे ज थयेली छे.
सं. २०२४ मां फागण सुद ५ीजे गुरुदेवे सौराष्ट्रमां विहार माटे सोनगढथी
मंगलप्रस्थान कर्युं; लाठी थईने राजकोट पधार्या, पछी वडालथी सांजे नेमप्रभुनी
साधनाभूमि गिरनार तीर्थधामना दर्शन करी आव्या; त्यांथी पोरबंदर, जेतपुर, गोंडल,
वडीया, मोरबी, ववाणीया, चै५ सुद तेरसे वांकानेर, चोटीला, सुरेन्द्रनगर, वढवाण,