प्रसन्नता हूई, आज जैसे हमलोग भगवान कुंदकुंदस्वामीका नाम मंगलरूपमें लेते हैं
वैसे भविष्यकी पेढीके लोग आपका (कानजी स्वामीका) नाम लेते रहेगें.’
वाणी घरे घरे जिज्ञासुओ अत्यंत प्रेमथी वांचे छे. रजतजयंतीना वर्षमां गुरुदेवना
विशेष आशीर्वाद मळ्या, साथे साथे आ वर्षमां ज श्रीमद्राजचंद्रजीनी जन्मशताब्दिनो
पण उत्सव हतो तेथी तेमनां सारभूत उत्तम वचनामृतोनुं दोहन करीने आत्मधर्म द्वारा
तेनो खूब प्रचार करवामां आव्यो. पं. टोडरमल्लजीनी द्विशताब्दिनो उत्सव पण आ ज
वर्षमां उजवायो ने तेना प्रचारमां पण खास विशेषांकद्वारा महत्त्वनो फाळो आप्यो.
आफ्रिकामां पण आपणा जिज्ञासुओए ‘श्रीमद्राजचंद्रस्मृतिगृह’ बंधावेलुं छे.
आफ्रिकामां एक मुमुक्षुभाईने त्यां लग्नप्रसंगे चार हजार धार्मिक पुस्तको सोनगढथी
मंगावीने लाणी करवामां आवी हती, ने जैनविधि–अनुसार लग्न थया हता. गुरुदेवना
उपदेशनो थोडक पण लक्षगत करतां कुदेव–कुगुरु–कुधर्मनुं सेवन तो मुमुक्षुना हृदयमांथी
जडमूळथी ऊखडी जाय छे, अने वीतरागी देव–गुरु–धर्म प्रत्ये कोई अनेरी भक्तिनो
उमंग जागे छे. आ तो धर्मनो एकडो लखवा माटेनी कोरी पाटी छे. –एकडो तो हजी
एनाथी आघो छे.
आपनुं नाम लखी आपो. –त्यारे गुरुदेव कहे के आ “ छे ते सर्वभगवाननी वाणी छे;
ए ज अमारुं नाम छे ने ए ज अमारुं धाम छे. “ एटले शुद्धआत्मा. (जे दिवसे आ
वात थई ते दि’ फागण वद एकम हती, सोनगढमां ज्यां गुरुदेव बिराजे छे त्यां “ नी
स्थापना ते दिवसे ज थयेली छे.
साधनाभूमि गिरनार तीर्थधामना दर्शन करी आव्या; त्यांथी पोरबंदर, जेतपुर, गोंडल,
वडीया, मोरबी, ववाणीया, चै५ सुद तेरसे वांकानेर, चोटीला, सुरेन्द्रनगर, वढवाण,