Atmadharma magazine - Ank 308a
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: प्र. अषाड : २४९प आत्मधर्म : ७ :
अध्यात्मसंत श्री कानजीस्वामी
संक्षिप्त जीवनपरिचय भाग–४
(ले. ब्र. हरिलाल जैन)
पू. श्री कहानगुरुना पवि५ जीवननुं आपणे अवलोकन
करी रह्या छीए. विक्रम सं. १९४६ मां उमराळामां जन्म,
स्थानकवासीनुं मुनिपणुं, पछी ते छोडीने परिवर्तन द्वारा सत्पंथे
प्रयाण अने दिगंबर जैनधर्मनी महान प्रभावना,
सम्मेदशिखरजी–बाहुबली–पोन्नुर–कुंदाद्रि–गीरनार वगेरेना
या५ाप्रसंगो, जिनबिंब–प्रतिष्ठाओ, मुंबईमां हीरकजयंति,
सोनगढमां अनेक प्रभावशाळी प्रसंगो, ने छेल्ले सं. २०२३ मां
बयाना शहेरमां सीमंधरप्रभुनी सन्मुख आनंदकारी जाहेरात, ए
बधानुं विवेचन आपे आत्मधर्मना छेल्ला बे अंको नं. (३०७–
३०८) मां वांच्युं. बाकीनो भाग आ अंकमां पूरो थाय छे. (सं.)
९ कुमारिका बहेनोनी ब्रह्मचर्यप्रतिज्ञा
आत्मानी स्वानुभूतिमां वेदाता अध्यात्मरसनुं ज पवि५ झरणुं गुरुदेव
वहेवडावी रह्या छे ते अध्यात्मरसनी पासे संसारनो रस क्यांंथी टकी शके? अमृत पासे
झेर क्यांथी टकी शके? एटले गुरुवाणीमां ए अध्यात्मरसनुं श्रवण करतां करतां
संसारथी विरक्त थई, संतोनी शीतल छायामां रही ए अध्यात्मरसनो स्वाद लेवा माटे
सं. २०२३ ना श्रावण वद एकमे नानी उमरनी नव कुमारिका बहेनोए एकी साथे
ब्रह्मचर्य–प्रतिज्ञा लीधी. पहेलां ६ पछी १४ पछी ८ अने पछी ९ बहेनोनी
समूहप्रतिज्ञानो आ चोथो प्रसंग बन्यो; ते उपरांत परचुरण मळीने बालब्रह्मचारी
बहेनोनी कुल संख्या पचास जेटली थई, –जेमां मा५ गुजराती ज नहि परंतु दूरदूरना