Atmadharma magazine - Ank 308a
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: प्र. अषाड : २४९प आत्मधर्म : १५ :
परस्परना सहयोगथी बंने समाजे जैनसमाजनुं गौरव वधार्युं. प्रतिष्ठा उत्सव पछी
गुरुदेव आठ दिवस मुंबईमां रह्या. ते दरमियान बोरिवलीमां राष्ट्रिय उद्यान सामे
भगवान ऋषभदेव तेमज भरत–बाहुबली एि५पुटी–भगवंतोनी ३० फूट ऊंची
खड्गासन प्रतिमाओनुं अवलोकन करवा पण गया हता.
वैशाख सुद पांचमे मुंबईथी विमान द्वारा ईंदोर पधार्या; १७प माईलनी झडपे
१२००० फूट ऊंचे आकाशमां ऊडी रहेला विमानमां बेठा बेठा गुरुदेवे हस्ताक्षर कर्या
के– ‘शुद्धज्ञायकना अंर्तमुख घोलनथी आत्माने आनंद थाय छे–जे वचनातीत छे.’
ईंदोरमां तिलकनगरना जिनमंदिरमां गुरुदेवनी उपस्थितिमां बे जिनबिंबोनी स्थापना
थई. बीजा दिवसे मक्षीजी पधार्या. मक्षीजीना दिगंबर जिनमंदिरमां भगवान
पारसनाथनी सवापांच फूट ऊंची भव्य प्रतिमानी वेदीप्रतिष्ठानो उत्सव थयो. –आ
उत्सवमां दसेक हजार माणसोए भाग लीधो अने सवालाख रूा. जेटली उपज थई.
उत्सव बाद मक्षीजीथी ईंदोर थईने मुंबई आव्या; ने वैशाख वद ९ नी सवारे विमान
द्वारा मुंबईथी पचास मिनिटमां भावनगर आवीने, सोनगढ पधार्या.....सुवर्णधाममां
अध्यात्मनी मेघवर्षा शरू थई.....आवो साधर्मी बंधुओ! आत्मजिज्ञासारूपी बीजने आ
अध्यात्मरूपी वर्षावडे सींचन करीए अने आत्मामां रत्न५यअंकुरा प्रगटावीए.
पू. गुरुदेवनी मंगलछायामां वसतां २६ वर्षमां अनेक पावन प्रसंगो नजरे
नीहाळ्‌या, अनेक उत्तम प्रसंगोनुं वर्णन गुरुदेवना श्रीमुखे सांभळ्‌युं, –एमांथी थोडुं थोडुं
आत्मधर्मद्वारा साधर्मीओ समक्ष रजु कर्युं छे. ते जिज्ञासुओने गम्युं छे, अने तेना द्वारा
गुरुदेवना जीवननो स्वाद चाखीने अनेक जिज्ञासुबंधुओए खूब ज प्रमोद व्यक्त कर्यो
छे, तथा विशेष प्रसंगो माटेनी मांगणी करी छे. विशेष प्रसंगोनुं संकलन करीने कोई
योग्य अवसरे प्रगट करीशुं.
गुरुदेवना जीवननो स्वाद चाखवो होय तो तेमना चरणसान्निध्यमां वसवुं ए
श्रेष्ठ उपाय छे. गुरुदेवनुं जीवन आपणने आत्महितनो उत्तम आदर्श आपे छे.
जीवनमां गुरुदेव आ वात रगडी–रगडीने घूंटावी रह्या छे के, जेने आत्मार्थ साधवो ज
छे तेने जीवननी कोई परिस्थिति रोकी शकवानी नथी. ज्यां अंतरमां आत्मार्थ
साधवानो द्रढ निश्चय ने साची लगन छे त्यां जगतसंबंधी अवनवा प्रसंगोमां पण
मुमुक्षुजीव पोताना निर्णयने ने लगनीने जराय ढीलीपोची थवा देतो नथी; संतोना
चरणोमां ते