Atmadharma magazine - Ank 308a
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : आत्मधर्म : प्र. अषाड : २४९प
पोतानी आत्मजिज्ञासानुं बळ वधारतो ज रहे छे; अने परमवैभवथी भरपूर जे
पोतानुं शुद्धस्वरूप तेनो महिमा करी करीने अंते तेमां अंतर्मुख थईने पोतानुं स्वकार्य
साधे छे. आ रीते आपणे पण जीवनमां वधु ने वधु वैराग्यथी, वधु ने वधु आत्मरसथी
गुरुचरणमां निरंतर उद्यम वडे आत्महितनुं स्वकार्य साधीए–ए ज भावना.
अहो, जीवनमां आवी आत्महितनी उत्तम प्रेरणाओ आपनारा
कहानगुरु जेवा जे सन्तरत्नो आपणने मळ्‌या छे तेमना
अनंत उपकारना स्मरणपूर्वक नमस्कार हो.
जय जिनेन्द्र
तमे जाणो छो?
* कहो जोईए आपणा हिमालय पर्वतनी ऊंचाई केटली?
–पांच के छ माईल जेटली.
* अने शाश्वत जिनमंदिरोथी शोभित मेरु पर्वतनी ऊंचाई
केटली? शुं हिमालयथी बमणी हशे?
–ना ना; हिमालयथी तो आठ करोड गणी एनी
ऊंचाई छे. हिमालयनी पांच छ माईल, तो मेरुनी पचास
करोड माईल! जैनवैभवथी भरपूर मेरु ते मानवलोकनी
महान शोभा छे....तीर्थंकरना अभिषेकने लीधे ते जगपूज्य
तीर्थं छे.
* स्वर्ग क्यां आव्युं ते खबर छे?
–ज्यां हिमालयनी टोच छे त्यां पहेला स्वर्गनुं तळीयुं छे, बंने
वचे मा५ एक वाळ जेटलुं अंतर छे.
जेटले ऊंचे सुधी मेरु छे त्यां सुधी मध्यलोक छे; पछी पहेलां
स्वर्गथी शरू करीने ठेठ सिद्धालय सुधीना लोकने ऊर्ध्वलोक
कहेवाय छे.