: प्र. अषाड : २४९प आत्मधर्म : १७ :
बधाय तीर्थंकरोए सेवेलो अने उपदेशेलो एक ज मार्ग
शुद्धात्मतत्त्वप्रवृत्तिरूप मोक्षमार्ग
अहो! ते तीर्थंकरोने अने ते मार्गने नमस्कार हो.
शुद्धात्माना अनुभवरूप जे मोक्षमार्ग, ते मार्गनो निःशंक निश्चय करीने, अने
पोते ते मार्गमां साक्षात् आरूढ थईने आचार्यदेव कहे छे–के बधाय भगवंतो पण आ
एक ज मार्गने सेवीने मोक्ष पाम्या छे अने आ ज मार्ग तेमणे जगतने उपदेश्यो छे–
श्रमणो, जिनो, तीर्थंकरो आ रीते सेवी मार्गने
सिद्धि वर्या; नमुं तेमने, निर्वाणना ते मार्गने. १९९.
एक मोक्षमार्ग व्यवहारना आश्रये, ने बीजो मोक्षमार्ग निश्चयना आश्रये–एम
बे मोक्षमार्ग नथी. मोक्षमार्ग एक ज छे. शुद्धात्मारूप निश्चयना आश्रये ज मोक्षमार्ग छे
ने व्यवहारना आश्रये मोक्षमार्ग नथी.
मोक्षनो एक ज मार्ग छे ते केवो छे? के शुद्धात्मतत्त्वमां प्रवृत्तिरूप छे.
चरमशरीरी बधाय जीवो आवा मार्गथी ज मोक्ष पाम्या; परंतु बीजा कोई मार्गथी मोक्ष
पाम्या नथी.
अनंता जीवो मोक्ष पाम्या छे–तो शुं बधाय जीवोने तमे ओळखी लीधा? –हा;
आचार्यदेव कहे छे के अमारा अंतरमां आवो मोक्षमार्ग अमे अनुभव्यो छे, शुद्धात्मामां
प्रवृत्ति वडे आवा मोक्षमार्गने अमे साधी रह्या छीए, मोक्षमार्गने साधवानुं कृत्य कराय
छे; एटले स्वयं मोक्षमार्गमां प्रवर्तन करता थका, अनुभवना बळे कहीए छीए के
बधाय तीर्थंकरभगवंतोए, बधाय मुनिवरो अने जिनवरोए आवो ज मोक्षमार्ग
उपास्यो छे, ने जगतना मुमुक्षुओने पण आवो ज मार्ग उपदेश्यो छे. बीजा मार्गनो
अभाव छे. आगळ पण ८२ मी गाथामां कह्युं हतुं के–
अर्हंत सौ कर्मोतणो करी नाश ए ज विधि वडे,
उपदेश पण एम ज करी, निर्वृत थया; नमुं तेमने ८२.