
मोक्षमार्गमां अमारी मति व्यवस्थित थई छे. जुओ, आचार्यदेव निःशंक स्वानुभवथी
जाणे छे के मोक्षना मार्गमां अमारी मति स्थिर थई छे; तेमां हवे बीजा विकल्पने
अवकाश नथी. माटे अति प्रलापथी बस थाओ. अहो, आवो एक ज मोक्षमार्ग
उपदेशनारा अर्हन्तोने नमस्कार हो.
मार्ग छे. अहो, शुद्धात्मानी अनुभूतिरूप आ एक ज मोक्षमार्ग, तेमां प्रवर्तेला,
सिद्धभगवंतोने नमस्कार हो; अने शुद्धात्मप्रवृत्तिरूप मोक्षमार्गने नमस्कार हो. –बीजा
विस्तारथी बस थाओ, आवो मोक्षमार्ग अमे अवधारित कर्या छे अने मोक्षने साधवानुं
कृत्य कराय छे. शुद्धात्माना अनुभवरूप मोक्षमार्गमां अमे वर्ती ज रह्या छीए.
भगवंतोए जे मार्ग सेव्यो, ते ज मार्गनो अनुभव करीने अमे पण मोक्षने साधी रह्या
छीए. जे मार्गे अनंता तीर्थंकरो संचर्या–ते ज मार्गे अमे पण चाली रह्या छीए. चोथा
काळना भगवंतो जे मार्गे चाल्या ते ज मार्गे अमे पंचमकाळना मुनिओ पण जई रह्या
छीए. अने अत्यारे विदेहक्षे५मां पण आ ज मार्ग तीर्थंकरभगवंतो उपदेशी रह्या छे, ने
मुनिओ आ ज मार्गे केवळज्ञान प्रगट करीने मोक्षने साधी रह्या छे. –आवो मोक्षनो
एक ज मार्ग छे. ५णेकाळना जीवोने माटे मोक्षनो मार्ग एक ज छे.–
अस्यैव–अभावतो बद्धा बद्धा ये किल केचनाा
सामान्य मुमुक्षु हो–बधायने माटे एक ज मोक्षमार्ग छे, कोईने माटे बीजो मोक्षमार्ग
नथी. पंचमकाळना अचरमशरीरी मुनिवरो पण आवा शुद्धात्मअनुभवरूप
निश्चयमोक्षमार्गमां वती रह्या छे. आवा मार्ग प्रत्येना प्रमोदथी आचार्यदेव कहे छे के
अहो, आवा मार्गने साधनारा तीर्थंकरोने नमस्कार हो, आवा मार्गने नमस्कार हो.
अमे पण आवो मोक्षमार्ग अवधारित कर्यो छे, कृत्य कराय छे: ‘