
सधातो नथी, ने भगवंतोए एवो शुभविकल्परूप मोक्षमार्ग उपदेश्यो नथी. भगवंतोए
तो शुद्धात्मामां प्रवृत्तिरूप एक वीतराग मोक्षमार्ग ज उपदेश्यो छे–
रागना एक अंशने पण जे मोक्षनुं साधन माने ते जीव भगवाने कहेला
वीतरागमार्गनो वेरी छे. भगवाने तो वीतरागभावने ज मोक्षमार्ग कह्यो छे, रागने तो
बंधनुं कारण कह्युं छे, ने आ जीव रागने मोक्षनुं कारण माने छे, तो ते सर्वज्ञना मार्गथी
भ्रष्ट छे. ‘
साधशे; केमके रागने बंधनुं कारण जाणे छे एटले अल्पकाळमां तेनो अभाव करीने
शुद्धात्मामां एकाग्रता वडे ते मोक्षने साधशे. आ रीते बधा जीवोने माटे आवा
शुद्धात्माना अनुभवरूप एक ज मोक्षमार्ग छे. बधाय तीर्थंकरोए सेवेलो अने उपदेशेलो
आ एक ज मार्ग छे. अहो, ते तीर्थंकरोने अने शुद्धात्मामां प्रवृत्तिरूप मोक्षमार्गने
नमस्कार हो.
रह्या छे तेने संसारतत्त्व कह्युं. अरे, अशरीरी आत्माने शरीर धारण करवुं पडे ते शरम
छे. धर्मी कहे छे के हुं तो सिद्धस्वरूप छुं; ‘हुं जन्मने जाणुं नहीं, सुखथी भरेलो शिव छुं’
अहो! आ मोक्षमार्गी श्रमणो ते मोक्षतत्त्व ज छे; तेओ अमारा मनोरथनुं स्थान छे.
तेमने नमस्कार हो. केवो नमस्कार? शुद्धात्मामां एकाग्रतारूप नमस्कार; वच्चेथी
रागनो विकल्प काढी नांखीने शुद्धात्मामां एकाग्र थतां, सिद्धोने अने मोक्षना मार्गने
सहेजे अभेद नमस्कार थई जाय छे. पोतानी परिणति शुद्ध थई ते ज