Atmadharma magazine - Ank 308a
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: प्र. अषाड : २४९प आत्मधर्म : १९ :
मोक्षमार्ग शुद्धात्मामां परिणमनरूप छे. मुनिदशामां आवो ज मोक्षमार्ग छे; वच्चे
शुभविकल्पो होय ते कांई मोक्षमार्ग नथी, ते शुभविकल्पवडे कदी कोई जीवने मोक्ष
सधातो नथी, ने भगवंतोए एवो शुभविकल्परूप मोक्षमार्ग उपदेश्यो नथी. भगवंतोए
तो शुद्धात्मामां प्रवृत्तिरूप एक वीतराग मोक्षमार्ग ज उपदेश्यो छे–
‘आवो मार्ग वीतरागनो भाख्यो श्री भगवान’
अरे! साचा मार्गनो पण जेने निर्णय नथी, मार्गनुं स्वरूप ज विपरीत माने छे
तेओ तो धर्मथी भ्रष्ट छे, मार्गथी भ्रष्ट छे; एने मुनिदशा केवी? ने मोक्षमार्ग केवो?
रागना एक अंशने पण जे मोक्षनुं साधन माने ते जीव भगवाने कहेला
वीतरागमार्गनो वेरी छे. भगवाने तो वीतरागभावने ज मोक्षमार्ग कह्यो छे, रागने तो
बंधनुं कारण कह्युं छे, ने आ जीव रागने मोक्षनुं कारण माने छे, तो ते सर्वज्ञना मार्गथी
भ्रष्ट छे. ‘
दंसणभट्टा भट्टा’ –सम्यग्दर्शनथी जे भ्रष्ट छे ते तद्न भ्रष्ट छे. सम्यग्दर्शन
होय पण कदाचित चारि५दशा न होय तोपण ते जीव भगवानना मार्गमां छे, ते मोक्षने
साधशे; केमके रागने बंधनुं कारण जाणे छे एटले अल्पकाळमां तेनो अभाव करीने
शुद्धात्मामां एकाग्रता वडे ते मोक्षने साधशे. आ रीते बधा जीवोने माटे आवा
शुद्धात्माना अनुभवरूप एक ज मोक्षमार्ग छे. बधाय तीर्थंकरोए सेवेलो अने उपदेशेलो
आ एक ज मार्ग छे. अहो, ते तीर्थंकरोने अने शुद्धात्मामां प्रवृत्तिरूप मोक्षमार्गने
नमस्कार हो.
जे मुनिओ शुद्धात्मप्रवृत्ति वडे मोक्षना साक्षात् कारणमां वर्ती रह्या छे ते
मुनिओने मोक्षतत्त्व ज कह्युं छे; अने जे जीवो संसारना कारणरूप मिथ्यात्वमां वर्ती
रह्या छे तेने संसारतत्त्व कह्युं. अरे, अशरीरी आत्माने शरीर धारण करवुं पडे ते शरम
छे. धर्मी कहे छे के हुं तो सिद्धस्वरूप छुं; ‘हुं जन्मने जाणुं नहीं, सुखथी भरेलो शिव छुं’
धर्मीने धर्मात्मा प्रत्ये उल्लास आवे छे. पोते मोक्षमार्गमां प्रवर्ती रहेला
कुंदकुंदाचार्यदेवने बीजा मोक्षमार्गी मुनिवरो प्रत्ये धर्मनो आवतां आह्लादथी कहे छे के
अहो! आ मोक्षमार्गी श्रमणो ते मोक्षतत्त्व ज छे; तेओ अमारा मनोरथनुं स्थान छे.
तेमने नमस्कार हो. केवो नमस्कार? शुद्धात्मामां एकाग्रतारूप नमस्कार; वच्चेथी
रागनो विकल्प काढी नांखीने शुद्धात्मामां एकाग्र थतां, सिद्धोने अने मोक्षना मार्गने
सहेजे अभेद नमस्कार थई जाय छे. पोतानी परिणति शुद्ध थई ते ज