Atmadharma magazine - Ank 308a
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: २० : आत्मधर्म : प्र. अषाड : २४९प
नमस्कार छे. वाह! संतो शुद्धात्मामां रमणता करीने प्रचुर आनंदनुं वेदन करतां करतां
मोक्षने साधी रह्या छे. धन्य एमनो अवतार! धन्य एमनी वीतराग परिणति!
मारामां पण हुं एवी वीतराग परिणति प्रगट करीने नमस्कार करुं छुं. वच्चे रागनो
विकल्प आव्यो ते वडे नमस्कार करवानुं न कह्युं, पण वच्चेथी विकल्पने काढी नांखीने
पोते पण वीतरागभावरूप थईने नमस्कार करे छे. एटले मोक्षमार्गमां वच्चेथी
व्यवहारनो निषेध करी नांख्यो. विकल्प तरफ झुकाव नथी, शुद्धात्मा तरफ ज झुकाव छे.
शुद्धात्मामां प्रवृत्तिरूप मोक्षमार्ग अमे अंगीकार कर्यो छे–एम धर्मी निःशंक जाणे छे.
पोतामां ज्ञान थयुं ने पोताने तेनी खबर न पडे –एम नथी. ‘अमने अंदर
सम्यग्दर्शनादि हशे के नहीं एवी शंका पडे ते मिथ्याद्रष्टि छे, धर्मीने एवी शंका न रहे. ते
तो स्वानुभवना जोरथी कहे छे के अमारो आत्मा मोक्षमार्गमां प्रवर्ती रह्यो छे, मोक्षने
साधवानुं कार्य थई ज रह्युं छे; मोक्षमार्ग अमे अवधारित कर्यो छे. आत्मा जाग्यो ने
मार्ग देख्यो–त्यां हवे संदेह केवो?
आत्माना केवा निर्णयथी धर्मीए मोक्षमार्ग अंगीकार कर्यो? तेनुं अद्भुत वर्णन
२००० मी गाथामां कर्युं छे. प्रथम तो, हुं मोक्षनो अधिकारी छुं, ने में ज्ञायकस्वभावी
आत्मतत्त्वनुं परिज्ञान कर्युं छे. आवा आत्मतत्त्वना परिज्ञानपूर्वक ममत्वनो त्याग
करीने अने निर्ममत्वनुं ग्रहण करीने सर्व उद्यमथी हुं शुद्धात्मामां वर्तुं छुं. –जुओ, आ
मोक्षने साधवानी विधि! मोक्षनी विधिमां शुद्धात्मप्रवृत्ति सिवाय बीजा कृत्यनो अभाव
छे; बीजुं कोई कृत्य मोक्षनुं साधन थतुं नथी. आवा मोक्षमार्गमां मारी मति व्यवस्थित
थई छे, तेमां हवे कोई संदेह रह्यो नथी. चोथा गुणस्थानथी ज धर्मी जाणे छे के हुं
मोक्षनो अधिकारी छुं...... मोक्षना मार्गमां हुं चाली रह्यो छुं.
परथी भिन्न शुद्ध आत्माना ज्ञानपूर्वक ज ममत्व छूटी शके. परनुं कर्तृत्व माने
तेने ममत्व कदी छूटे नहि. रागने मोक्षनुं साधन माने तेने रागनुं ममत्व छूटे नहि, ने
वीतरागी मोक्षमार्ग कदी थाय नहीं. माटे, मोक्षनो अधिकारी मोक्षनो युवराज एवो धर्मी
कहे छे के में मारा ज्ञायकस्वभावी आत्मतत्त्वने बराबर जाण्युं छे; तेना परिज्ञानपूर्वक
सर्व५ ममत्वनो त्याग करीने हुं शुद्धात्मामां प्रर्वतुं छुं; केमके शुद्ध आत्मामां प्रवर्तवा
सिवाय अन्य कृत्यनो मारामां अभाव छे. आत्मा ज्ञायक छे; आखुं विश्व ज्ञेय छे, ए
सिवाय विश्वना पदार्थो साथे आत्माने बीजो कांई संबंध नथी. परनी साथे स्व–
स्वामीपणानो सर्वथा अभाव छे, माटे मने परनुं ममत्व नथी.