: प्र. अषाड : २४९प आत्मधर्म : २३ :
(२०) ते बे कार्योना बे कर्ता कोण–कोण छे
ज्ञाननो कर्ता ज्ञानी छे; ने क्रोधनो कर्ता अज्ञानी छे.
(२१) आवा बे कर्ताने जाणवाथी शुं थाय?
ज्ञान अने क्रोधादि वच्चे भेदज्ञान थाय.
(२२) अज्ञानीने आवुं भेदज्ञान केम नथी थतुं?
केमके ते बे–कर्ता न मानतां, एक ज कर्ता माने छे. ज्ञान अने क्रोध ए बंने
विरुद्ध कार्योनो हुं एक ज कर्ता छुं–एम अज्ञानी माने छे, एटले ते ज्ञानने अने
क्रोधने बंनेने एक ज मानीने वर्ते छे तेथी तेने भेदज्ञान थतुं नथी.
(२३) ज्ञाननो महिमा शुं छे?
ज्ञानभाव अने क्रोधभाव–ए बंने भावोने तद्न भिन्न जाणी ल्ये छे, अने
क्रोधनुं कर्तृत्व छोडीने तेनाथी जुदुं परिणमे छे–ते ज्ञान महिमावंत छे, ते अत्यंत
धीर शांत अने नीराकुळ छे.
(२४) जीव ज्ञानी क्यारे थाय?
ज्यारे ज्ञान अने रागनुं अत्यंत भिन्नपणुं जाणीने पोताने ज्ञानपणे ज
अनुभवे ने रागनुं कर्तृत्व छोडे, –त्यारे ते जीव ज्ञानी छे.
(२प) अज्ञानी परनो कर्ता छे?
ना; अज्ञानी पण फक्त पोताना रागादि भावनो ज कर्ता छे.
(२६) ज्ञानी रागना कर्ता छे?
ना; ज्ञानी पोताना ज्ञानभावना ज कर्ता छे; रागना ते ज्ञाता छे, कर्ता नथी.
(२७) धर्मी जीव कोने भिन्न नथी देखतो?
धर्मी जीव ज्ञानने अने आत्माने भिन्न नथी देखतो; तेने अभिन्न देखे छे.
(२८) धर्मी जीव कोने भिन्न देखे छे?
धर्मी जीव ज्ञानने अने क्रोधादिने भिन्न देखे छे, तेने एकमेक नथी देखतो.