Atmadharma magazine - Ank 308a
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: २८ : आत्मधर्म : प्र. अषाड : २४९प
(८) ज्यों सती अंग माहीं शृंगार,
अति करे प्यार ज्यों नगरनारि;
ज्यों धाव चुखावति अन्य बाल,
त्यां भोग करत नाहीं खुशाल.
अथवा जेम सतीना शरीरनो
शणगार परपुरुष प्रत्ये राग माटे नथी,
जेम वेश्या अतिशय प्रेम करे छे पण ते
अंतरनो प्रेम नथी. अने जेम धावमाता
बीजाना बाळकने दूध पीवडावे छे पण
अंतरमां ते बाळकने परायुं जाणे छे, –तेम
सम्यग्द्रष्टि जीव संसारना भोग भोगववा
छतां ते भोगमां ते खुशी नथी–तेमां ते
सुख मानतो नथी, तेनाथी विरक्त छे.
(९) जो उदयमोह चारि५ भाव, नहीं
होत रंच हूं त्याग ताव; तहां करे
मन्द खोटे कषाय, घरमें उदास हो
अथिर थाय.
चारि५मोहरूप उदयभावने कारणे
रंचमा५ त्याग थई शकतो नथी, परंतु ते
खोटा कषायभावोने मंद करे छे अने
अस्थिरपणे उदास चित्ते घरमां रहे छे.
(१०) सबकी रक्षायुत न्याय नीति,
जिनशासन गुरुकी द्रढ प्रतीति;
बहु रूले अर्द्ध पुद्गल प्रमाण,
शीघ्र ही मरत ले परम थान.
बधा जीवोनी रक्षा सहित न्याय
नीतिथी प्रवर्ते छे, जिनशासननी अर्थात्
सर्वज्ञभगवानना उपदेशनी अने गुरुनी
द्रढ प्रतीति करे छे; सम्यक्त्वथी भ्रष्ट थईने
वधुमां वधु रुले तोपण अर्द्धपुद्गल–
परिवर्तन काळ संसारमां रहे छे. कोईवार
समाधिमरण करीने शीघ्र परम स्थानने
पामे छे.
(११) वे धन्य जीव धन्य भाग्य सोई,
जिनके ऐसी सुप्रतीति होई;
तिनकी महिमा है स्वर्ग लोई,
बुधजन भासे मोसे न होई.
जेने शुद्धात्मानी आवी सुप्रतीति
थई छे–सम्यक्त्व थयुं छे, ते जीव धन्य छे,
ते धन्यभाग्य छे; स्वर्गलोकमां पण तेनी
प्रशंसा थाय छे, बुधजन ज्ञानीजनो तेनी
प्रशंसा करे छे, पण (कवि बुधजन कहे छे
के) माराथी तेनुं वर्णन थई शकतुं नथी.
(पं. बुधजन कृत छहढाळमां ५ीजी ढाळ पूर्ण)