Atmadharma magazine - Ank 309
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म : द्वि. अषाड : २४९५
राजाए मुनिने पुछ्युं के आ वांदरो कोण छे?
त्यारे मुनिए कह्युं के हे राजा! आ वांदरो पूर्वभवमां नागदत्त नामनो
वाणीयो हतो, त्यारे घणां कपटभाव करवाथी ते वांदरो थयो छे. पण हवे तेने
घणा ऊंचा भाव जाग्या छे; ने तेने धर्मनो प्रेम जाग्यो छे. धर्मनो उपदेश
सांभळवाथी ते वांदरो घणो खुशी थयो छे; तेने पूर्वभवनुं ज्ञान थयुं छे अने
संसारथी ते उदास थयो छे.
मुनि पासेथी वांदरानां वखाण सांभळीने राजा घणो खुशी थयो.
वळी मुनिओए कह्युं:–
हे राजा! जेम आ भवमां अमे तमारा पुत्रो हता, तेम आ वांदरो पण
भविष्यना भवमां तमारो पुत्र थशे, अने ज्यारे तमे ऋषभदेव तीर्थंकर थशो त्यारे आ
वांदरानो जीव तमारो गणधर थशे; ने पछी मोक्ष पामशे.




अहा, मुनिना मुखथी ए
वात सांभळीने वांदराभाई तो
बहु ज खुशी थया; ते घणा ज
भावथी मुनिने पगे लाग्या ने
आनंदथी नाची उठया. पोताना
मोक्षनी वात सांभळीने कोने
आनंद न थाय? वांदराभाईना
तो आनंदनो पार न रह्यो. ते
रोज ऊंची ऊंची भावना भाववा
लाग्यो... के क््यारे मनुष्य थाउं...
ने क््यारे मोक्ष पामुं!