: द्वि. अषाड : २४९५ आत्मधर्म : ११ :
अंते ते वांदरो मरीने मनुष्य थयो; ने भोगभूमिमां जन्म्यो. राजा अने राणीना
जीवो पण त्यां ज जन्म्या हता.
एकवार ते बधा जीवो बेठा हता ने धर्मनी वात करता हता. एवामां
आकाशमांथी बे मुनिराज
त्यां ऊतर्या... ने घणा ज
हेतथी सम्यग्दर्शननो
उपदेश दीधो, आत्मानुं
स्वरूप समजाव्युं; अने
कह्युं के हे जीवो! तमे
आजे ज आवा
सम्यग्दर्शनने ग्रहण करो;
आजे ज तमारा आत्माने
ओळखो.
मुनिराजनो
उपदेश सांभळीने ते बधा
जीवोए आत्मानी
ओळखाण करी
सम्यग्दर्शन पाम्या;
वांदरानो जीव पण
सम्यग्दर्शन पाम्यो ने
मोक्षमार्गे चाल्यो. अहा,
एक वखतनो वांदरो पण
आत्माने ओळखवाथी
भगवान बनी गयो.
शाबाश छे एने!
पछी तो ते बधा जीवो त्यांथी स्वर्गमां गया; ने चार भव पछी राजानो जीव
ऋषभदेव तीर्थंकर थयो; ते वखते वांदरानो जीव तेमनो पुत्र थयो, तेनुं नाम गुणसेन.
तेणे भगवान पासे दीक्षा लीधी, ने ते भगवाननो गणधर थयो. पछी केवळज्ञान प्रगट
करीने मोक्ष पाम्यो. तेने नमस्कार.