: १२ : आत्मधर्म : द्वि. अषाड : २४९५
बंधुओ, मुनिनी भक्तिथी ने आत्माने ओळखवाथी एक वांदरानो जीव पण
भगवान बनी गयो. तो आपणे पण आत्माने ओळखवो जोईए, ने मुनिओनी सेवा
करवी जोईए. जेथी आपणे पण भगवान थईशुं.
हवे श्रावण महिने आवशुं... ने बीजी वार्ता लावशुं,
आनंद मनावशुं... ने आत्माने जगाडशुं.
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जैनधर्ममां क्रिया
जैनधर्ममां क्रिया छे?
हा; मोक्षनी साची क्रिया जैनधर्ममां ज छे.
तमे क्रियाने मानो छो?
जी हा, राग वगरनी जे मोक्षनी क्रिया छे तेने मोक्षनी क्रिया तरीके मानीए
छीए; पण जे रागादि बंध–क्रियाओ छे तेने मोक्षनी क्रिया तरीके नथी मानता, तेने
बंधनी क्रिया तरीके मानीए छीए. अने पुद्गलनी क्रियाओने जडनी क्रिया तरीके
मानीए छीए. आम त्रण प्रकारनी भिन्नभिन्न क्रियाओने अमे मानीए छीए, तेमने
एकबीजामां भेळसेळ करता नथी. अज्ञानीओ जडनी–रागनी ने मोक्षनी ए त्रणे
क्रियाओने एकबीजामां भेळसेळ करे छे ने मोक्षनी साची क्रिया तेने आवडती नथी. ते
रागनी क्रियाने (एटले के अधर्मनी क्रियाने) के जडनी क्रियाने मोक्षना साधन तरीके
माने छे, मोक्षनी (धर्मनी) क्रियाने ते ओळखता नथी.
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जनसिद्धान्त
* आत्मा जडनो कर्ता छे? ... ना.
* आत्मा जडनो कर्ता केम नथी? ... केमके आत्मा जड नथी.
* जडनो कर्ता कोण होय? ... जे जड होय ते.
* कर्ता अने तेनुं कर्म बंने एक जातिनां होय, विरुद्ध जातनां न होय.
* चेतननुं कार्य चेतन; जडनो कर्ता जड.