: द्वि. अषाड : २४९५ आत्मधर्म : १३ :
पं. बुधजनरचित छहढाळा (चोथी ढाळ)
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पंडित श्री बुधजनजी रचित आ छहढाळानी त्रण ढाळ अगाउ आत्मधर्म
अंक ३०४, ३०६ तथा ३०८A मां आवी गई छे. आ चोथी ढाळमां
सम्यक्त्वना आठ अंगोनुं तथा पचीस दोषरहितपणानुं कथन छे. पं.
बुधजनजीनी आ छहढाळा वांचीने पं. दौलतरामजीए छहढाळा रची छे.
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[सोरठा]
ऊगो आतमसूर दूर गयो मिथ्यात्व तम।
अब प्रगटो गुणपूर ताको कूछ ईक कहत हूं ।।१।।
(२)
शंका मनमें नांहि तत्त्वार्थ श्रद्धानमें।
निर्वांछक चित्तमांहि परमारथमें रत रहें ।।
(३)
नेक न करते ग्लानि बाह्य मलिन मुनिजन लखें।
नाहीं होत अजान तत्त्व कुतत्त्व विचारमें।।
(४)
उरमें दया विशेष गुण प्रगटें अवगुण ढकें।
शिथिल धर्ममें देख जैसे तैसे थिर करें।।
(५)
साधर्मी पहिचान करे प्रीति गोवत्ससम।
महिमा होय महान धर्मकार्य ऐसे करें ।।
[अर्थ]
सम्यक्त्व थतां आत्मसूर्य ऊग्यो
अने मिथ्यात्व–अंधकार दूर थयो त्यां
गुणनो समूह प्रगट्यो, तेमांथी केटलाक
अहीं कहुं छुं (१)
तेना मनमां तत्त्वार्थश्रद्धानमां शंका नथी;
परमार्थ साधवामां रत रहे छे, ने चित्तमां
बीजी कोई वांछा नथी; मुनिजनोमां बाह्य
मलिनता देखीने जराय ग्लानि करता नथी;
तत्त्व अने कुतत्त्वना विचारमां अजाण के मूढ
रहेता नथी; अंतरमां विशेष दया छे, ने
धर्मात्माना गुणोने प्रसिद्ध करे छे, तथा
अवगुणने ढांके छे; धर्मात्माने धर्ममां शिथिल
थता देखे तो हरकोई उपाये तेने धर्ममां स्थिर
करे छे; साधर्मीओने ओळखी तेना प्रत्ये
गोवत्स समान प्रीति करे छे; अने धर्मना
एवा कार्यो करे छे के जेथी धर्मनो अतिशय
महिमा प्रसिद्ध थाय. (आ प्रमाणे सम्यकत्व
थतां आ निःशंकतादि आठ गुण प्रगटे छे.)
(२–३–४–५)