विशेष प्रिय एवो कर्ताकर्म–अधिकार, तेनां प्रवचनोमांथी
८० प्रश्नोत्तरनी आ भेदज्ञान–पुष्पमाळाना ४६ प्रश्नोत्तर
छेल्ला बे अंकमां आपे वांच्या; बाकीना अहीं रजु थाय
छे. (सं.)
हा, सिद्धभगवंतो पुण्य वगर ज आनंदसहित जीवी रह्या छे. मुनिओ
पण ज्यारे शुभोपयोग छोडीने शुद्धोपयोगमां लीन थाय छे त्यारे परम
आनंदने अनुभवे छे. ते प्रकारनो थोडोक अनुभव चोथागुणस्थानवर्ती
गृहस्थनेय थई शके छे. पुण्य के शुभराग ते कांई आत्मानुं जीवन नथी,
ते कांई आत्माना प्राण नथी; चैतन्यभाव ते ज आत्मानुं जीवन छे, ते
ज प्राण छे.
जे कोई जीवो समजे तेमने लाभ थाय.
ना.
ज्ञानने तो रागनी निवृत्ति साथे अविनाभाव छे. साचुं भेदज्ञान तो
रागथी पाछुं वळेलुं छे. रागना कर्तृत्वमां रोकायेलुं ज्ञान ते साचुं ज्ञान
नथी, अज्ञान छे.