Atmadharma magazine - Ank 309
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : आत्मधर्म : द्वि. अषाड : २४९५
(५१)
मुमुक्षु जीवे सौथी पहेलांं शुं लक्षमां लेवुं?
ज्ञान अने रागनी भिन्नता लक्षमां लेवी.
(५२) ज्ञान अने रागनुं भेदज्ञान थतां शुं थाय?
भेदज्ञान थतां ज्ञान आस्रवोथी नीवर्ते छे.
(५३) आस्रवोथी नीवर्तवुं एटले शुं?
आस्रवोथी नीवर्तवुं एटले ज्ञानस्वभाव तरफ झूकवुं; ज्ञान ज्ञानमां ज
एकत्वपणे वर्ते ने रागादिमां एकत्वपणे न वर्ते, ते आस्रवोथी नीवर्त्युं
कहेवाय.
(५४) रागमां एकपणे वर्ते ते ज्ञान केवुं कहेवाय?
ते अज्ञान कहेवाय.
(५५) ज्ञानीनो ज्ञानभाव केवो छे?
ज्ञानीनो ज्ञानभाव राग के बंध वगरनो छे; ते मोक्षनुं कारण छे.
(५६) सम्यकत्व पहेलांं तत्त्वनिर्णयना अभ्यासथी शुं थाय छे?
साचा निर्णयना अभ्यासथी मिथ्यात्वनो रस मंद पडतो जाय छे. विकल्प
होवा छतां, ‘ज्ञानमां’ सत्यस्वरूपना घोलन वडे मिथ्यात्व तूटतुं
जाय छे. विकल्प उपर जोर न देतां ज्ञान उपर जोर देवुं.
(५७) जैनशासन एटले शुं?
जेने जाणवाथी जरूर मुक्ति थाय ते जैनशासन.
(५८) कोने जाणवाथी जरूर मुक्ति थाय?
आत्माना शुद्ध ज्ञानानंदस्वभावने शुद्धनयथी जे देखे ते समस्त
जिनशासनने देखे छे, अने तेनी जरूर मुक्ति थाय छे.
(५९) राग ते जैनशासन छे के नथी?
ना, राग ते जैनशासन नथी, तेमज एकला राग तरफनुं ज्ञान ते पण
जैनशासन नथी.