Atmadharma magazine - Ank 309
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: द्वि. अषाड : २४९५ आत्मधर्म : १७ :
(६०)
तो जैनशासन शुं छे?
अंतर्मुख भावश्रुतज्ञान वडे जे आ भगवान शुद्ध आत्मानी अनुभूति
छे ते समस्त जिनशासननी अनुभूति छे. आ रीते शुद्ध आत्मा ते ज
जिनशासन छे.
(६१) जिनशासनमां रागनुं पण कथन तो छे?
पदार्थोनुं स्वरूप ओळखवा माटे जिनशासनमां कथन तो बधुंय आवे,
परंतु तेथी कांई ते बधायने जिनशासन न कहेवाय. जिनशासनमां तो
पापोनुं पण वर्णन आवे छे तो शुं पापभाव ते जिनशासन छे? शुद्ध
आत्मानी अनुभूति वगर जिनशासनने जाणी शकातुं नथी.
(६२) रागने अने निमित्तोने जाणवा ते जैनशासन छे के नथी?
एकला रागने अने निमित्तो वगेरेने ज जाणवामां रोकाय, पण शुद्ध
आत्माना स्वभाव तरफ ज्ञानने न वाळे तो ते जीव जिनशासनमां
आव्यो नथी; केमके जिनशासनमां कांई एकला रागनुं ने निमित्तोनुं ज
कथन नथी, परंतु तेमां रागथी ने निमित्तोथी पार एवा शुद्ध आत्मानुं
पण प्रधान कथन छे. अने ते शुद्ध आत्माने रागने तथा निमित्तोने ए
सर्वेने जे जाणे ते जीवनुं ज्ञान शुद्ध आत्मा तरफ वळ्‌या वगर रहे ज
नहि, ने रागादिथी पाछुं फर्या वगर रहे ज नहि. ए रीते स्वभाव–
विभाव ने संयोग ईत्यादि सर्वने जिनशासन अनुसार जाणीने
शुद्धनयना अवलंबन वडे जे जीव पोताना आत्माने शुद्धपणे अनुभवे
छे ते ज जिनशासनमां आव्यो छे ने तेणे ज सकल जिनशासनने जाण्युं
छे. –एवो जीव अल्पकाळमां जरूर मुक्ति पामे छे.
(६३) धर्मनी शरूआत क््यारे थाय? बोधीबीज क््यारे प्रगटे?
चैतन्यतत्त्व तो अंतर्मुख छे अने रागादि भावो तो बहिर्मुख छे, तेमने
एकपणुं नथी. ज्यां सुधी चैतन्यनी अने रागनी भिन्नताने न जाणे
त्यां सुधी भेदज्ञानरूप बोधिबीज प्रगटे नहि. हुं तो चैतन्य छुं ने
रागादिभावो तो चैतन्यथी भिन्न छे, ज्ञानमांथी रागनी उत्पत्ति नथी,
ने रागमांथी ज्ञाननी उत्पत्ति नथी. आवुं भेदज्ञान करे त्यारे जीवनी
परिणति रागथी खसीने अंतरमां चैतन्यस्वभाव तरफ वळे छे, ने त्यारे
सम्यग्दर्शनादि धर्मनी अपूर्व शरूआत थाय छे.