(६४) धर्मलब्धिनो काळ क््यारे?
धर्मलब्धि छे. धर्म करनार जीव काळ सामे जोईने बेसी रहेतो नथी पण
पोताना स्वभावमां अंतर्मुख थाय छे, ने स्वभावमां अंतर्मुख थतां पांचे लब्धि
एक साथे आवी मळे छे. स्वभावमां अंतर्मुख थाय ने धर्मलब्धिनो काळ न
होय एम बने नहि.
अने अजीव द्रव्योने अत्यंत भिन्नता छे, तेम चैतन्यभावने अने रागादि भावोने
पण अत्यंत भिन्नता छे, बंनेनी जात ज जुदी छे. –आवुं अंतरनुं भेदज्ञान ते
कोई शुभराग वडे थतुं नथी पण चैतन्यना ज अवलंबने थाय छे. भेदज्ञान ते
अंतरनी चीज छे, ए कोई बहारना भणतरनी के शुभरागनी चीज नथी.
आवुं भेदज्ञान होय–एवुं कोई भेदज्ञाननुं माप नथी. अंतरना वेदनमां जेणे
चैतन्यने अने रागने भिन्न जाण्या, ने उपयोगने रागथी छूटो पाडीने चैतन्यमां
वाळ्यो ते जीव भेदज्ञानी छे; शास्त्रोए जेवी ज्ञान अने रागनी भिन्नता बतावी
छे तेवी परिणतिरूपे ते धर्मात्मानुं साक्षात् परिणमन थयुं छे.
केम थाय? रागनो जेमां अभाव छे एवा चैतन्यना अवलंबने ज रागनुं ने
ज्ञाननुं भेदज्ञान थाय छे.
ने व्यवहारतो पराश्रित रागभाव छे, तेना आश्रये भेदज्ञान थतुं नथी, तेना