Atmadharma magazine - Ank 309
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : आत्मधर्म : द्वि. अषाड : २४९५
(६४) धर्मलब्धिनो काळ क््यारे?
जीवने ज्यां भेदज्ञान थयुं त्यां तेने धर्मलब्धिनो काळ आव्यो. भेदज्ञान ते ज
धर्मलब्धि छे. धर्म करनार जीव काळ सामे जोईने बेसी रहेतो नथी पण
पोताना स्वभावमां अंतर्मुख थाय छे, ने स्वभावमां अंतर्मुख थतां पांचे लब्धि
एक साथे आवी मळे छे. स्वभावमां अंतर्मुख थाय ने धर्मलब्धिनो काळ न
होय एम बने नहि.
(६५) प्राथमिक शिष्ये शुं करवुं?
प्राथमिक शिष्ये धर्मलब्धिने माटे प्रथम भेदज्ञाननो अभ्यास करवो. जेम जीव
अने अजीव द्रव्योने अत्यंत भिन्नता छे, तेम चैतन्यभावने अने रागादि भावोने
पण अत्यंत भिन्नता छे, बंनेनी जात ज जुदी छे. –आवुं अंतरनुं भेदज्ञान ते
कोई शुभराग वडे थतुं नथी पण चैतन्यना ज अवलंबने थाय छे. भेदज्ञान ते
अंतरनी चीज छे, ए कोई बहारना भणतरनी के शुभरागनी चीज नथी.
(६६) केटलुं भणे तो भेदज्ञान थाय?
अमुक शास्त्रो जाणे तो ज आवुं भेदज्ञान होय, के व्रत–महाव्रत पाळे तेने ज
आवुं भेदज्ञान होय–एवुं कोई भेदज्ञाननुं माप नथी. अंतरना वेदनमां जेणे
चैतन्यने अने रागने भिन्न जाण्या, ने उपयोगने रागथी छूटो पाडीने चैतन्यमां
वाळ्‌यो ते जीव भेदज्ञानी छे; शास्त्रोए जेवी ज्ञान अने रागनी भिन्नता बतावी
छे तेवी परिणतिरूपे ते धर्मात्मानुं साक्षात् परिणमन थयुं छे.
(६७) रागना अवलंबने भेदज्ञान थाय?
ना; रागथी तो अत्यंत भिन्नता करवानी छे, तो ते भिन्नता रागना अवलंबने
केम थाय? रागनो जेमां अभाव छे एवा चैतन्यना अवलंबने ज रागनुं ने
ज्ञाननुं भेदज्ञान थाय छे.
(६८) आमां निश्चय–व्यवहारनुं भेदज्ञान क्या प्रकारे आव्यु?
निश्चय तो स्वाश्रितचैतन्यस्वभाव छे, ते स्वभावना आश्रये भेदज्ञान थाय छे,
ने व्यवहारतो पराश्रित रागभाव छे, तेना आश्रये भेदज्ञान थतुं नथी, तेना