Atmadharma magazine - Ank 309
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: द्वि. अषाड : २४९५ आत्मधर्म : २१ :
भाव छे, ते तो भगवान थवानुं कारण केम होय? न ज होय. रागथी
जुदो पडीने चैतन्यस्वभाव तरफ वळवुं ते ज भगवान थवानुं कारण छे.
भगवान चैतन्य तो आनंदनुं धाम छे, तेमांथी कदी दुःखनी उत्पत्ति थाय
नहि. रागमांथी तो आकुळता अने दुःखनी उत्पत्ति थाय छे, तो ते
चैतन्यनो स्वभाव केम होय? अंतरना वेदनथी चैतन्यने अने रागने
अत्यंत जुदा पाडी नाख! एवी भिन्नताना अनुभव वडे तुं जरूर
भगवान थईश.
(७५) भेदज्ञान थया पहेलां शुं हतुं ने पछी शुं थयुं?
पहेलांं अज्ञानदशा हती त्यारे– अपनेको आप भूलके हैरान हो गया...
परंतु हवे ज्यां भेदज्ञान थयुं त्यां– अपनेको आप जानके आनंदी हो गया...
भेदज्ञान थयुं त्यां अज्ञान टळ्‌युं, ज्ञानमां प्रवर्त्यो ने आस्रवोथी निवर्त्यो,
दुःखनुं कारण दूर थयुं ने सुखनुं वेदन प्रगट्युं; आ बधानो काळ एक ज छे.
(७६) भेदज्ञाननो केवो महिमा छे?
आचार्य देव ज्ञानना महिमाथी कहे छे के अहो! परपरिणतिने छोडतुं अने
भेदनां कथनोने तोडतुं जे आ प्रत्यक्ष स्वसंवेदनरूप भेदज्ञान उदय पाम्युं छे,
ते ज्ञानमां हवे विभाव साथे कर्ताकर्मनी प्रवृत्तिनो अवकाश ज नथी, अने
तेने बंधन पण नथी. जुओ, आ ज्ञान!! ज्ञान परभावोथी छूटयुं; अहा,
छूटकाराना पंथे चडेला आ ज्ञानने बंधन केम होय? मति–श्रुत क्षायोपमिक
होवा छतां स्वसंवेदन तरफ वळ्‌यां त्यां ते प्रत्यक्ष छे, अने ते ज्ञानने बंधन
नथी, तेमां विकारनुं कर्तृत्व नथी. चैतन्यना मध्यबिंदुथी ते ज्ञान ऊछळ्‌युं छे,
तेने केवळ ज्ञान लेतां हवे कोई रोकी शके नहि.
(७७) भणेलो छतां अभण कोण छे?
जेने उपयोगस्वरूप आत्मानो अनुभव नथी ते जीव भले गमे तेटलुं
भण्यो होय तोपण ते खरेखर अभण छे, भणतरनो जरापण सार तेणे
प्राप्त कर्यो नथी. भणतरनो सार ए छे के ज्ञानस्वरूप आत्माने परथी
भिन्न अनुभववो.
(७८) अभण छतां भणेलो कोण छे?
जेने निर्विकल्प आत्मानो अनुभव छे ते जीव भले कदाच शास्त्रभणतर
वगेरे