Atmadharma magazine - Ank 309
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: २२ : आत्मधर्म : द्वि. अषाड : २४९५
न भण्यो होय, बहारनुं ओछुं जाणपणुं होय तोपण खरेखर ते बधुं
भणेलो छे, बधा भणतरनो सार जे शुद्धआत्मअनुभव ते तेणे पोतामां
प्राप्त करी लीधो छे.
(७९) कोण हारेला? ने कोण जीतेला?
जेणे चिदानंद तत्त्वनो अनुभव कर्यो नथी, मोक्षने साधवानी रीतनी
जेने खबर नथी ते भले कदाच मोटा वकता होय के घणा शास्त्रोनी
धारणावाळा होय तोपण तेओ हारी गयेला छे... अनुभव वगरनी
एकली धारणा कांई शरणरूप नहीं थाय, एकली बाह्यधारणावडे ते
मोहने जीती नहीं शके.
अने जेणे चिदानंद तत्त्वना आनंदनो अनुभव कर्यो छे ने मोक्षने साधी
रह्या छे तेने भले कदाच बोलतां के वांचतां पण न आवडतुं होय, बीजी
धारणा पण थोडी होय–तोपण ते जीतेला छे, ते अल्पकाळमां मोहने
जीतीने केवळज्ञान प्रगट करीने
त्रणलोकना नाथ थशे.
(८०) पुण्यनो मार्ग अने धर्मनो मार्ग एक छे के जुदा?
पुण्यनो मार्ग अने धर्मनो मार्ग एक नथी पण जुदा छे; पुण्यनो मार्ग
बहिर्मुख छे, धर्मनो मार्ग अंतर्मुख छे; पुण्यनुं फळ संसार छे, धर्मनुं फळ
मोक्ष छे.
(८१) शास्त्रना अर्थनो निर्णय कोण करी शके?
शास्
त्रना शब्दोमां तो कांई ज्ञान नथी, ज्ञान आत्मामां छे. जेणे
आत्मानी सन्मुख थईने निर्मळज्ञानदशा प्रगट करी, ते ज शास्त्रना
अर्थनो खरो निर्णय करी शके छे.
* * *
एक सारुं मजानुं तीर्थ... चार अक्षरनुं नाम;
ऊंचुं तो भई एवुं के आकाशने अडे.
बहादुर एवुं के सिंहने खोळामां रमाडे.
छतां नेमप्रभुनां चरणोमां तो ए नमी पडे.
एना बेकी नंबरना बंने अक्षरो सरखा.
जो न शोधी आपो तो तमे सौराष्ट्रना रहेवासी नहि.