: द्वि. अषाड : २४९५ आत्मधर्म : २३ :
मोक्षमार्गे जनारानी
आंख एटले आगमज्ञान
[प्रवचनसार गा. २३३ थी २३६ उपरनां प्रवचनोमांथी]
अनेकान्त जेनुं लक्षण छे एवा आगमना भावश्रुतज्ञानवडे स्व–परनुं तेमज
परमात्माना स्वरूपनुं यथार्थ ज्ञान थाय छे अने मोक्षमार्ग सधाय छे. जेने आगमनुं
ज्ञान नथी तेने स्व–परनुं के परमात्मस्वरूपनुं ज्ञान नथी अने तेना ज्ञान वगर मोक्ष
सधातो नथी.
स्व शुं ने पर शुं तेने ओळख्या वगर स्वमां एकाग्रता क््यांथी थाय? आत्मानुं
परमस्वरूप शुं छे तेने जाण्या वगर तेमां एकाग्रता क््यांथी थाय? ने एकाग्रता वगर
मोक्ष क््यांथी सधाय? माटे कहे छे के आगमज्ञान वगर मोक्षनी सिद्धि नथी.
‘आगमज्ञान’ कहेतां एकला शब्दोना जाणपणानी वात नथी पण द्रव्य–गुण–
पर्यायनुं जे गंभीर स्वरूप आगममां बतावुं छे, स्व–परनुं जेवुं स्वरूप आगममां
बताव्युं छे अने आत्मानुं जेवुं परम स्वरूप आगममां बताव्युं छे तेवुं स्वरूप जाणतां
आत्माना सम्यक्श्रद्धान–ज्ञान–अनुभवरूप एकाग्रता प्रगटे छे, एवुं भावश्रुत ते खरुं
आगमज्ञान छे. आवा ज्ञान वडे मोहनो क्षय थाय छे, एटले तेने ज कर्मना क्षयरूप
मोक्षनी सिद्धि थाय छे.
सर्वज्ञप्रणीत आगमज्ञान वडे पदार्थना स्वरूपनो निश्चय थाय छे. पदार्थना
निश्चय वडे मिथ्यात्वबुद्धि छूटे छे एटले परमां कर्तृत्व–भोकतृत्वनी अभिलाषा छूटीने
ज्ञानस्वरूप आत्मामां एकमां स्थिरता थाय छे. आवी एकाग्रता वडे शुद्धात्मप्रवृत्तिरूप
मुनिपणुं थाय छे, अने तेने मोक्ष सधाय छे. पण हजी पदार्थनुं स्वरूप शुं छे तेनी जेने
खबर नथी ते तो परना कर्ता–भोकतापणानी अभिलाषामां रखडे छे, तेने स्वमां
एकाग्रता थती नथी, एटले मुनिदशा के मोक्ष तेने सधाता नथी.
मोक्षमां जनारा जीवोने आगम ज एक चक्षु छे. आगमना ज्ञान वडे अतीन्द्रिय
पदार्थोनुं स्वरूप पण ओळखाय छे. माटे कहे छे के कर्मक्षयना अर्थी जीवोए सर्वप्रकारे
आगमनी पर्युपासना करवी योग्य छे. आगमज्ञान तो शुद्धात्मानो स्वानुभव करावे छे.
जेने स्वानुभव नथी तेने साचुं आगमज्ञान कहेता नथी. आगमज्ञान