: २४ : आत्मधर्म : द्वि. अषाड : २४९५
वगरना जगतना जीवो आंधळा छे, वस्तुस्वरूपने तेओ देखी शकता नथी. मोक्षना
मार्गमां चालवा माटे मुमुक्षुने आगमज्ञान ते चक्षु छे. जगतना संसारी जीवो
ईंद्रियचक्षुथी देखनारा छे, ते ईंद्रियचक्षु वडे आत्मा देखातो नथी. धर्मात्माओ
आगमचक्षु वडे स्वानुभव करीने शुद्धात्माने देखे छे.
सर्वज्ञ भगवाने कहेला आगम केवा छे? के तेनुं अंतरंग गंभीर छे; जगतना
समस्त पदार्थो त्रणे काळे उत्पाद–व्यय–ध्रुवरूप छे–आवुं जे सर्व पदार्थनुं यथार्थ ज्ञान
तेनाथी भरेलुं आगमनुं अंतरंग गंभीर छे. सर्वज्ञदेवे कहेला आगमना ज्ञान सिवाय
सर्व पदार्थनुं आवुं सूक्ष्म यथार्थ स्वरूप जाणी शकाय नहीं. अहो! जिनागमनी
गंभीरता!
आवा आगमवडे ज पदार्थना स्वरूपनो निश्चय थाय छे. पण जेमां पदार्थोनी
पराधीनता बतावी होय, बीजा वडे तेनी उत्पत्ति के नाश बताव्या होय–तो ते सर्वज्ञे
कहेला आगम नथी. सर्वज्ञना आगम यथार्थ वस्तुस्वरूप ओळखावीने उपयोगस्वरूप
आत्मानो अनुभव करावे छे. जेने आगमद्वारा यथार्थ वस्तुस्वरूपनुं ज्ञान नथी तेने ज
एवी मिथ्याबुद्धि थाय छे के हुं विश्वना पदार्थोने रचुं, अथवा मारी पर्यायने बीजो रचे.
पदार्थना निश्चय वगरनो ते जीव डामाडोळ अने अस्थिर रहे छे, स्वमां एकाग्रता नहि
होवाथी ते सदाय व्यग्र ज रहे छे. एक एवा शुद्धात्मामां तो एकाग्रता छे नहि तेथी
अनेक एवा परद्रव्योपणे अथवा अनेक विकल्पोपणे पोताने अनुभवतो थको व्यग्र ज
रहे छे. एवा जीवने मुनिदशा होती नथी. मुनिदशा तो आत्मानी प्रतीति–अनुभूतिरूप
शुद्धात्मप्रवृत्ति छे. ए ज मोक्षमार्ग छे. माटे मुमुक्षुए आगमना सम्यक् अभ्यासवडे
यथार्थ वस्तुस्वरूप जाणवामां पावरधा थवुं.
भाई, तारे मोक्षने साधवो छेने? मोक्ष एटले आत्मानी शुद्धता; तेने साधवा
माटे स्व कोण ने पर कोण एने तो ओळख. जगतना अन्य पदार्थो, तेने तुं तारा मानी
ले तो तने स्व–परनी भिन्नतानुं पण भान नथी. परद्रव्योने पोतानुं माननारो जीव ते
तो अपराधी छे. बीजानी वस्तु लईने एम कहे के आ मारी छे–तो ते चोर गणाय; तेम
उपयोगस्वरूप जे पोतानो आत्मा, तेनाथी भिन्न जगतना अन्य पदार्थोने जे पोतानां
माने छे, तेनुं कार्य हुं करुं एम माने छे–तो ते जीव पण चोर छे–अपराधी छे, –संसारनी
जेलमांथी ते छूटशे नहीं.
बार अंगरूप जिनागममां शुद्धात्मअनुभूतिने ज मोक्षमार्ग कह्यो छे. आगम
अनुसार स्व–परनी भिन्नता जाण्या वगर शुद्धआत्मानी अनुभूति थई शके नहीं.